१॰ ऐश्वर्य प्राप्ति
‘माता सीता की स्तुति’ का नित्य श्रद्धा-विश्वासपूर्वक पाठ करें।
“उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम्।
सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम्।।” (बालकाण्ड, श्लो॰ ५)”
अर्थः- उत्पत्ति, स्थिति और संहार करने वाली, क्लेशों की हरने वाली तथा सम्पूर्ण कल्याणों की करने वाली श्रीरामचन्द्र की प्रियतमा श्रीसीता को मैं नमस्कार करता हूँ।।
२॰ दुःख-नाश
‘भगवान् राम की स्तुति’ का नित्य पाठ करें।
“यन्मायावशवर्तिं विश्वमखिलं ब्रह्मादिदेवासुरा
यत्सत्वादमृषैव भाति सकलं रज्जौ यथाहेर्भ्रमः।
यत्पादप्लवमेकमेव हि भवाम्भोधेस्तितीर्षावतां
वन्देऽहं तमशेषकारणपरं रामाख्यमीशं हरिम्।।” (बालकाण्ड, श्लो॰ ६)
अर्थः- सारा विश्व जिनकी माया के वश में है और ब्रह्मादि देवता एवं असुर भी जिनकी माया के वश-वर्ती हैं। यह सब सत्य जगत् जिनकी सत्ता से ही भासमान है, जैसे कि रस्सी में सर्प की प्रतीति होती है। भव-सागर के तरने की इच्छा करनेवालों के लिये जिनके चरण निश्चय ही एक-मात्र प्लव-रुप हैं, जो सम्पूर्ण कारणों से परे हैं, उन समर्थ, दुःख हरने वाले, श्रीराम है नाम जिनका, मैं उनकी वन्दना करता हूँ।
३॰ सर्व-रक्षा
‘भगवान् शिव की स्तुति’ का नित्य पाठ करें।
“यस्याङ्के च विभाति भूधरसुता देवापगा मस्तके
भाले बालविधुर्गले च गरलं यस्योरसि व्यालराट,
सोऽयं भूतिविभूषणः सुरवरः सर्वाधिपः सर्वदा शर्वः
सर्वगतः शिवः शशिनिभः श्रीशङ्करः पातु माम
” (अयोध्याकाण्ड, श्लो॰१)
अर्थः- जिनकी गोद में हिमाचल-सुता पार्वतीजी, मस्तक पर गंगाजी, ललाट पर द्वितीया का चन्द्रमा, कण्ठ में हलाहल विष और वक्षःस्थल पर सर्पराज शेषजी सुशोभित हैं, वे भस्म से विभूषित, देवताओं में श्रेष्ठ, सर्वेश्वर, संहार-कर्त्ता, सर्व-व्यापक, कल्याण-रुप, चन्द्रमा के समान शुभ्र-वर्ण श्रीशंकरजी सदा मेरी रक्षा करें।
४॰ सुखमय पारिवारिक जीवन
‘श्रीसीता जी के सहित भगवान् राम की स्तुति’ का नित्य पाठ करें।
“नीलाम्बुजश्यामलकोमलाङ्गं सीतासमारोपितवामभागम,
पाणौ महासायकचारुचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम
” (अयोध्याकाण्ड, श्लो॰ ३)
अर्थः- नीले कमल के समान श्याम और कोमल जिनके अंग हैं, श्रीसीताजी जिनके वाम-भाग में विराजमान हैं और जिनके हाथों में (क्रमशः) अमोघ बाण और सुन्दर धनुष है, उन रघुवंश के स्वामी श्रीरामचन्द्रजी को मैं नमस्कार करता हूँ।।
५॰ सर्वोच्च पद प्राप्ति
श्री अत्रि मुनि द्वारा ‘श्रीराम-स्तुति’ का नित्य पाठ करें।
छंदः-
“नमामि भक्त वत्सलं । कृपालु शील कोमलं ॥
भजामि ते पदांबुजं । अकामिनां स्वधामदं ॥
निकाम श्याम सुंदरं । भवाम्बुनाथ मंदरं ॥
प्रफुल्ल कंज लोचनं । मदादि दोष मोचनं ॥
प्रलंब बाहु विक्रमं । प्रभोऽप्रमेय वैभवं ॥
निषंग चाप सायकं । धरं त्रिलोक नायकं ॥
दिनेश वंश मंडनं । महेश चाप खंडनं ॥
मुनींद्र संत रंजनं । सुरारि वृंद भंजनं ॥
मनोज वैरि वंदितं । अजादि देव सेवितं ॥
विशुद्ध बोध विग्रहं । समस्त दूषणापहं ॥
नमामि इंदिरा पतिं । सुखाकरं सतां गतिं ॥
भजे सशक्ति सानुजं । शची पतिं प्रियानुजं ॥
त्वदंघ्रि मूल ये नराः । भजंति हीन मत्सरा ॥
पतंति नो भवार्णवे । वितर्क वीचि संकुले ॥
विविक्त वासिनः सदा । भजंति मुक्तये मुदा ॥
निरस्य इंद्रियादिकं । प्रयांति ते गतिं स्वकं ॥
तमेकमभ्दुतं प्रभुं । निरीहमीश्वरं विभुं ॥
जगद्गुरुं च शाश्वतं । तुरीयमेव केवलं ॥
भजामि भाव वल्लभं । कुयोगिनां सुदुर्लभं ॥
स्वभक्त कल्प पादपं । समं सुसेव्यमन्वहं ॥
अनूप रूप भूपतिं । नतोऽहमुर्विजा पतिं ॥
प्रसीद मे नमामि ते । पदाब्ज भक्ति देहि मे ॥
पठंति ये स्तवं इदं । नरादरेण ते पदं ॥
व्रजंति नात्र संशयं । त्वदीय भक्ति संयुता ॥” (अरण्यकाण्ड)
‘मानस-पीयूष’ के अनुसार यह ‘रामचरितमानस’ की नवीं स्तुति है और नक्षत्रों में नवाँ नक्षत्र अश्लेषा है। अतः जीवन में जिनको सर्वोच्च आसन पर जाने की कामना हो, वे इस स्तोत्र को भगवान् श्रीराम के चित्र या मूर्ति के सामने बैठकर नित्य पढ़ा करें। वे अवश्य ही अपनी महत्त्वाकांक्षा पूरी कर लेंगे।
६॰ प्रतियोगिता में सफलता-प्राप्ति
श्री सुतीक्ष्ण मुनि द्वारा श्रीराम-स्तुति का नित्य पाठ करें।
“श्याम तामरस दाम शरीरं । जटा मुकुट परिधन मुनिचीरं ॥
पाणि चाप शर कटि तूणीरं । नौमि निरंतर श्रीरघुवीरं ॥१॥
मोह विपिन घन दहन कृशानुः । संत सरोरुह कानन भानुः ॥
निशिचर करि वरूथ मृगराजः । त्रातु सदा नो भव खग बाजः ॥२॥
अरुण नयन राजीव सुवेशं । सीता नयन चकोर निशेशं ॥
हर ह्रदि मानस बाल मरालं । नौमि राम उर बाहु विशालं ॥३॥
संशय सर्प ग्रसन उरगादः । शमन सुकर्कश तर्क विषादः ॥
भव भंजन रंजन सुर यूथः । त्रातु सदा नो कृपा वरूथः ॥४॥
निर्गुण सगुण विषम सम रूपं । ज्ञान गिरा गोतीतमनूपं ॥
अमलमखिलमनवद्यमपारं । नौमि राम भंजन महि भारं ॥५॥
भक्त कल्पपादप आरामः । तर्जन क्रोध लोभ मद कामः ॥
अति नागर भव सागर सेतुः । त्रातु सदा दिनकर कुल केतुः ॥६॥
अतुलित भुज प्रताप बल धामः । कलि मल विपुल विभंजन नामः ॥
धर्म वर्म नर्मद गुण ग्रामः । संतत शं तनोतु मम रामः ॥७॥” (अरण्यकाण्ड)
विशेषः
“संशय-सर्प-ग्रसन-उरगादः, शमन-सुकर्कश-तर्क-विषादः।
भव-भञ्जन रञ्जन-सुर-यूथः, त्रातु सदा मे कृपा-वरुथः।।”
उपर्युक्त श्लोक अमोघ फल-दाता है। किसी भी प्रतियोगिता के साक्षात्कार में सफलता सुनिश्चित है।
७॰ सर्व अभिलाषा-पूर्ति
‘श्रीहनुमान जी कि स्तुति’ का नित्य पाठ करें।
“अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् ।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।” (सुन्दरकाण्ड, श्लो॰३)
८॰ सर्व-संकट-निवारण
‘रुद्राष्टक’ का नित्य पाठ करें।
॥ श्रीरुद्राष्टकम् ॥
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥ १॥
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसारपारं नतोऽहम् ॥ २॥
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गङ्गा लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥ ३॥
चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥ ४॥
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम् ।
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥ ५॥
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।
चिदानन्द संदोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥ ६॥
न यावत् उमानाथ पादारविन्दं भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावत् सुखं शान्ति सन्तापनाशं प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् ॥ ७॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ॥ ८॥
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥
॥ इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं संपूर्णम् ॥
विशेषः- उक्त ‘रुद्राष्टक’ को स्नानोपरान्त भीगे कपड़े सहित शिवजी के सामने सस्वर पाठ करने से किसी भी प्रकार का शाप या संकट कट जाता है। यदि भीगे कपड़े सहित पाठ की सुविधा न हो, तो घर पर या शिव-मन्दिर में भी तीन बार, पाचँ बार, आठ बार पाठ करके मनोवाञ्छित फल पाया जा सकता है। यह सिद्ध प्रयोग है। विशेषकर ‘नाग-पञ्चमी’ पर रुद्राष्टक का पाठ विशेष फलदायी है।
बजरंग बाण का अमोघ विलक्षण प्रयोग
बजरंग बाण
भौतिक मनोकामनाओं की पुर्ति के लिये बजरंग बाण का अमोघ विलक्षण प्रयोग
अपने इष्ट कार्य की सिद्धि के लिए मंगल अथवा शनिवार का दिन चुन लें। हनुमानजी का एक चित्र या मूर्ति जप करते समय सामने रख लें। ऊनी अथवा कुशासन बैठने के लिए प्रयोग करें। अनुष्ठान के लिये शुद्ध स्थान तथा शान्त वातावरण आवश्यक है। घर में यदि यह सुलभ न हो तो कहीं एकान्त स्थान अथवा एकान्त में स्थित हनुमानजी के मन्दिर में प्रयोग करें।
हनुमान जी के अनुष्ठान मे अथवा पूजा आदि में दीपदान का विशेष महत्त्व होता है। पाँच अनाजों (गेहूँ, चावल, मूँग, उड़द और काले तिल) को अनुष्ठान से पूर्व एक-एक मुट्ठी प्रमाण में लेकर शुद्ध गंगाजल में भिगो दें। अनुष्ठान वाले दिन इन अनाजों को पीसकर उनका दीया बनाएँ। बत्ती के लिए अपनी लम्बाई के बराबर कलावे का एक तार लें अथवा एक कच्चे सूत को लम्बाई के बराबर काटकर लाल रंग में रंग लें। इस धागे को पाँच बार मोड़ लें। इस प्रकार के धागे की बत्ती को सुगन्धित तिल के तेल में डालकर प्रयोग करें। समस्त पूजा काल में यह दिया जलता रहना चाहिए। हनुमानजी के लिये गूगुल की धूनी की भी व्यवस्था रखें।
जप के प्रारम्भ में यह संकल्प अवश्य लें कि आपका कार्य जब भी होगा, हनुमानजी के निमित्त नियमित कुछ भी करते रहेंगे। अब शुद्ध उच्चारण से हनुमान जी की छवि पर ध्यान केन्द्रित करके बजरंग बाण का जाप प्रारम्भ करें। “श्रीराम–” से लेकर “–सिद्ध करैं हनुमान” तक एक बैठक में ही इसकी एक माला जप करनी है।
गूगुल की सुगन्धि देकर जिस घर में बगरंग बाण का नियमित पाठ होता है, वहाँ दुर्भाग्य, दारिद्रय, भूत-प्रेत का प्रकोप और असाध्य शारीरिक कष्ट आ ही नहीं पाते। समयाभाव में जो व्यक्ति नित्य पाठ करने में असमर्थ हो, उन्हें कम से कम प्रत्येक मंगलवार को यह जप अवश्य करना चाहिए।
बजरंग बाण ध्यान
श्रीराम
अतुलित बलधामं हेमशैलाभदेहं।
दनुज वन कृशानुं, ज्ञानिनामग्रगण्यम्।।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं।
रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि।।
जन सामान्य की पीड़ा निवारण में रामचरित मानस और हनुमान चालीसा की चौपाइयां और दोहे जातक की कुंडली में व्याप्त ग्रह दोष और पीड़ा निवारण में सहायक हो सकते हैं। इन्हें सुगमता से समझा जा सकता है और श्रद्धापूर्वक पारायण करने से लाभ मिल जाता है। मानस की चौपाइयों में मंत्र तुल्य शक्तियां विद्यमान हैं। इनका पठन,मनन और जप करके लाभ लिया जा सकता है।
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प्रेम प्राप्ति
भुवन चारिदस भरा उछाहु। जनक सुता रघुबीर बिआहू।।
गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई।।
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रोजगार के लिए
बिस्व भरन पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत अस होई।।
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क्लेश निवारण
हरन कठिन कलि कलुष कलेसू। महामोह निसि दलन दिनेसू।।
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विध्न्न -बाधा निवारण
प्रणवों पवनकुमार खल बन पावक ग्यान घन। जासु ह्वदय आगार बसहि राम सर चाप धर॥ ।
मनोरथ पूर्ति के लिए
भव भेषज रघुनाथ जसु, सुनाही जे नर अरू नारी। तिन्ह कर सकल मनोरथसिद्ध करहि त्रिसिरारी॥ .
एकल चंद्र (केमेन्द्रुम दोष) निवारण
बिन सतसंग बिबेक न होई।राम कृपा बिनु सुलभ न सोई ॥.
कालसर्प दोष निवारण
रावण जुद्ध अजान कियो तब, नाग कि फांस सबै सिर डारो।
श्री रघुनाथ समेत सबै दल,मोह भयो यह संकट भारो।।
आनि खगेश तबै हनुमान जु, बंधन काटि सुत्रास निवारो।
को नहि जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो।।
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स्थान/ नगर में प्रवेश करते समय
प्रबिस नगर कीजे सब काजा।ह्वदय राखि कोसलपुर राजा।।
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राहु प्रभाव से कलंक मुक्ति के लिए
मंत्र महामनि विषय ब्याल के ।
मेटत कठिन कुअंक भाल के ॥हरन मोह तम दिनकर कर से ।सालि पाल जलधर के॥ .
निराशा यानी शनि प्रभाव से मुक्ति
गौतम नारि श्राप बस उपल देह धरि धीर। चरन कमल रज चाहति कृपा करहु रघुबीर॥
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आलस्य से मुक्ति
हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रणाम। राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहां विश्राम॥
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विजय प्राप्ति के लिए
विजय रथ का पाठ लंकाकाण्ड ( दोहा 79-80 मध्य) का नियमित पाठ विजय प्राप्त कराता है।
परिकल्पना-प्रोजेक्ट पूर्णता के लिये भागीरथ के गंगा अवतरण प्रयास का नियमित पाठ व्यक्ति की कल्पना को साकार करता है।
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बंधन मुक्ति
सौ बार हनुमान चालीसा पाठ सभी बंधनों से मुक्त करता है।
श्रद्धापूर्वक मनन,पठन, जप और श्रवण करने से सभी समस्याओं का समाधान हो जाता है। पे्रम और दृढ़ विश्वास फल प्राप्ति के लिए जरूरी है। गुरू मार्गदर्शन लेकर सभी मनोरथ पूरे कर सकते हैं।
गोस्वामी तुलसीदासजी के द्वारा प्रकट किये गये रामचरितमानस के मन्त्र
केवल दो ही चौपाइयों का सम्पुट अधिक मिलता है,एक तो "मंगल भुवन अमंगल हारी,द्रवउ से दसरथ अजिर बिहारी",और दूसरी "दीन दयाल बिरदु सम्भारी,हरहु नाथ मम संकट भारी",इसके बाद जो अधिक जानते है,वे अधिक और चौपाइयों का बखान करते है.पहली चौपाई का भाव केवल एक मनुष्य या परिवार के लिये नही है,इस चौपाई का भाव अगर समझा जावे तो बहुत बडा मिलता है,मंगल का अर्थ अगर ज्योतिष से लिया जावे तो भाई से मिलता है,शरीर में खून से मिलता है,संसार में धर्म से मिलता है,और हिम्मत और साहस से मिलता है,संसार में चलने वाले धर्म के अन्दर अधर्म को चलने से रोकने के लिये प्रार्थना का रूप यह चौपाई है,और प्रभु राम से प्रार्थना की गयी है,कि धर्म के प्रति अब तो इस अधर्मी संसार के मन में द्रवता का भाव भरो,द्रवता का अर्थ दायलुता से है,जो लोग एक दूसरे को मारे डाल रहे है,शराब मांस का भक्षण करने के बाद उनको पता नही होता कि वे क्या करने जा रहे है,जिस जर जोरू जमीन के लिये वे लडे जा रहे है,वह कल भी उनकी नही थी,आज कुछ समय के लिये वे मान सकते है,कि उनकी है,लेकिन कल और किसी की होगी,करोडों वर्षों से यह कहानी चली आ रही है,राजाओं ने फ़ौजें कटवादीं,लाखों लोग इन तीन के लिये मरे और मारे गये है,लेकिन समझ आज भी किसी को नही आ रही है.रामायण की चौपाइयों का अर्थ और उनका महत्व हम आगे कभी समझायेंगे,लेकिन जिन चौपाइयों को केवल स्मरण करने से बाधा दूर होती है,और प्रधानत: शांति का भान होता है,उन चौपाइयों का अर्थ और स्मरण का तरीका हम आपके समक्ष प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहे है,किसी प्रकार की भाषाई त्रुटि अगर हो जाती है,तो सज्जन क्षमा भी करेंगे,ऐसा मेरा विश्वास है.
रामायण का सबसे बडा मंत्र
रामायण का सबसे बडा मंत्र मिल जाये तो संसार की कोई भी निधि उसके सामने मायना नही रखती है,निधि को तो चोर ले जायेंगे,लुटेरे लूट लेंगे,लेकिन अगर यह निधि अगर ह्रदय में निवास करते है,तो फ़िर से वापस सभी निधियां आ जायेंगी.रामायण के सबसे बडे मंत्र का बखान श्री गोस्वामी तुलसीदास जी ने कितनी खूबशूरती से किया है:-
"राम रमेति रमेति रमो,रामेति मनोरमे,सहस्त्र नाम तातुल्यम राम नाम वरानने"
इस मंत्र को ह्रदय में रखने के बाद संसार की सभी अमूल्य निधियां मनुष्य की दासी बन जायेंगी,और उसे किसी प्रकार का डर,भय,गरीबी,अपमान,आदि किसी भी बात को सहन नही करना पडेगा.इस मंत्र को मैने अपनाया है,और आज भी मेरे ह्रदय में निवास करता है,इस मंत्र को मैने साक्षात प्रभावी माना है,इसका एक प्रमाण आपके सामने प्रस्तुत करता हूँ.
जय श्रीराम
ReplyDeleteबहुत दिनों से मैं सुंदर कांड का पाठ कर रहा हूँ, लेकिन मेरे मनोकामना पूरी नही हो रही है, पहले घर पर करता था अब मंदिर में शनिवार को करता हूँ। करें
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