शरद पूर्णिमा का महत्व
हिन्दु पंचांग के अनुसार हर मास की 15वीं तिथि है जिस दिन चंद्रमा आकाश में पूरा होता है पूर्णिमा कहलाती है। वैसे तो हर माह में ही पूर्णिमा आती है लेकिन शरद पूर्णिमा का महत्व उन सभी से बहुत अधिक है। आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता हैं। हिंदू धर्म शास्त्रों में भी इस पूर्णिमा का विशेष महत्व बताया गया है।
कहा जाता है कि धन की देवी माता लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। इसलिए देश के कई हिस्सों में लोग शरद पूर्णिमा को पूर्ण श्रद्धा से माँ लक्ष्मी का पूजन करते है। इस दिन प्रात: स्नान करके माँ लक्ष्मी को कमल का फूल एवं मिष्ठान अर्पण करके उनकी पूजा आराधना अवश्य ही करनी चाहिए जिससे उनका आशीर्वाद जीवन भर बना रहे ।
द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ तब मां लक्ष्मी राधा रूप में अवतरित हुई। भगवान श्री कृष्ण और राधा की अदभुत एवं दिव्य रासलीलाओं का आरंभ भी शरद पूर्णिमा के दिन माना जाता है। इसीलिए शरद पूर्णिमा को 'रास पूर्णिमा' या 'कामुदी महोत्सव' भी कहा जाता है।
मान्यता है कि भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कुमार कार्तिकेय का जन्म भी शरद पूर्णिमा के दिन ही हुआ था। इसलिए इसे कुमार पूर्णिमा भी कहा जाता है। पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में इस दिन कुमारी कन्याएं प्रातः स्नान करके पूर्ण विधि विधान से भगवान सूर्य और चन्द्रमा की पूजा करती हैं। जिससे उन्हें योग्य एवं मनचाहा पति प्राप्त हो।
हिन्दु धर्म शास्त्रों में मान्यता है कि माँ लक्ष्मी को खीर बहुत प्रिय है इसलिए हर पूर्णिमा को माता को खीर का भोग लगाने से कुंडली में धन का प्रबल योग बनता है। लेकिन शरद पूर्णिमा के दिन माँ लक्ष्मी को खीर का भोग लगाने का और भी विशेष महत्व है।
ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की किरणों में विशेष अमृतमयी गुण भी होता हैं, जिससे बहुत सी बीमारियों का नाश हो जाता हैं। इसी कारण शरद पूर्णिमा की रात को लोग गाय के दूध की खीर बनाकर माता लक्ष्मी को भोग लगाकर उसे अपने घरों की छतों पर रखते हैं जिससे वह खीर चंद्रमा की किरणों के संपर्क में आ जाये और उसके बाद अगले दिन सुबह उसका सेवन किया जाता है। इस खीर के सेवन से निरोगिता और दीर्घ आयु की प्राप्ति होती है। इस दिन बहुत से भक्त खीर का प्रसाद भी वितरण करते है।
इस समय चंद्रमा की उपासना भी करनी चाहिए।
इस दिन तांबे के बरतन में देशी घी भरकर किसी ब्राह्मण को दान करने और साथ में दक्षिणा भी देने से बहुत पुण्य की प्राप्ति होती है और धन लाभ की प्रबल सम्भावना बनती है। इस दिन ब्राह्मण को खीर, कपड़े आदि का दान भी करना बहुत शुभ रहता है ।
इस दिन श्रीसूक्त, लक्ष्मीसत्रोत का पाठ एवं हवन करना भी बेहद शुभ माना जाता है।
स्त्री को लक्ष्मी का रूप माना गया है अत: जो भी व्यक्ति इस दिन अपने घर की सभी स्त्रियों माँ, पत्नी, बहन, बेटी, भाभी, बुआ, मौसी, दादी आदि को प्रसन्न रखता है उनका आशीर्वाद लेता है, उनको यथाशक्ति उपहार देता है , माँ लक्ष्मी उस घर से कभी भी नहीं जाती है उस व्यक्ति को जीवन में किसी भी वस्तु का आभाव नहीं रहता है । इस दिन स्त्रियों का आशीर्वाद साक्षात माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद ही होता है, अत: उन्हें किसी भी दशा में नाराज़ नहीं करना चाहिए ।
इस दिन संध्या के समय 100 या इससे अधिक घी के दीपक जलाकर घर के पूजा स्थान, छत, गार्डन, तुलसी के पौधे, चारदिवारी आदि के पास रखने से, अर्थात इन दीपमालाओं से घर को सजाने से भी माँ लक्ष्मी की असीम कृपा प्राप्त होती है।
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