प्रायः सभी धर्मग्रंथों में ऊपरी हवाओं, नजर दोषों आदि का उल्लेख है। कुछ ग्रंथों में इन्हें बुरी आत्मा कहा गया है तो कुछ अन्य में भूत-प्रेत और जिन्न। यहां ज्योतिष के आधार पर नजर दोष का विश्लेषण प्रस्तुत है। ज्योतिष सिद्धांत के अनुसार गुरु पितृदोष, शनि यमदोष, चंद्र व शुक्र जल देवी दोष, राहु सर्प व प्रेत दोष, मंगल शाकिनी दोष, सूर्य देव दोष एवं बुध कुल देवता दोष का कारक होता है। राहु, शनि व केतु ऊपरी हवाओं के कारक ग्रह हैं। जब किसी व्यक्ति के लग्न (शरीर), गुरु (ज्ञान), त्रिकोण (धर्म भाव) तथा द्विस्वभाव राशियों पर पाप ग्रहों का प्रभाव होता है, तो उस पर ऊपरी हवा की संभावना होती है। लक्षण नजर दोष से पीड़ित व्यक्ति का शरीर कंपकंपाता रहता है। वह अक्सर ज्वर, मिरगी आदि से ग्रस्त रहता है। कब और किन स्थितियों में डालती हैं ऊपरी हवाएं किसी व्यक्ति पर अपना प्रभाव? जब कोई व्यक्ति दूध पीकर या कोई सफेद मिठाई खाकर किसी चौराहे पर जाता है, तब ऊपरी हवाएं उस पर अपना प्रभाव डालती हैं। गंदी जगहों पर इन हवाओं का वास होता है, इसीलिए ऐसी जगहों पर जाने वाले लोगों को ये हवाएं अपने प्रभाव में ले लेती हैं। इन हवाओं का प्रभाव रजस्वला स्त्रियों पर भी पड़ता है। कुएं, बावड़ी आदि पर भी इनका वास होता है। विवाह व अन्य मांगलिक कार्यों के अवसर पर ये हवाएं सक्रिय होती हैं। इसके अतिरिक्त रात और दिन के १२ बजे दरवाजे की चौखट पर इनका प्रभाव होता है। दूध व सफेद मिठाई चंद्र के द्योतक हैं। चौराहा राहु का द्योतक है। चंद्र राहु का शत्रु है। अतः जब कोई व्यक्ति उक्त चीजों का सेवन कर चौराहे पर जाता है, तो उस पर ऊपरी हवाओं के प्रभाव की संभावना रहती है। कोई स्त्री जब रजस्वला होती है, तब उसका चंद्र व मंगल दोनों दुर्बल हो जाते हैं। ये दोनों राहु व शनि के शत्रु हैं। रजस्वलावस्था में स्त्री अशुद्ध होती है और अशुद्धता राहु की द्योतक है। ऐसे में उस स्त्री पर ऊपरी हवाओं के प्रकोप की संभावना रहती है। कुएं एवं बावड़ी का अर्थ होता है जल स्थान और चंद्र जल स्थान का कारक है। चंद्र राहु का शत्रु है, इसीलिए ऐसे स्थानों पर ऊपरी हवाओं का प्रभाव होता है। जब किसी व्यक्ति की कुंडली के किसी भाव विशेष पर सूर्य, गुरु, चंद्र व मंगल का प्रभाव होता है, तब उसके घर विवाह व मांगलिक कार्य के अवसर आते हैं। ये सभी ग्रह शनि व राहु के शत्रु हैं, अतः मांगलिक अवसरों पर ऊपरी हवाएं व्यक्ति को परेशान कर सकती हैं। दिन व रात के १२ बजे सूर्य व चंद्र अपने पूर्ण बल की अवस्था में होते हैं। शनि व राहु इनके शत्रु हैं, अतः इन्हें प्रभावित करते हैं। दरवाजे की चौखट राहु की द्योतक है। अतः जब राहु क्षेत्र में चंद्र या सूर्य को बल मिलता है, तो ऊपरी हवा सक्रिय होने की संभावना प्रबल होती है। मनुष्य की दायीं आंख पर सूर्य का और बायीं पर चंद्र का नियंत्रण होता है। इसलिए ऊपरी हवाओं का प्रभाव सबसे पहले आंखों पर ही पड़ता है। यहां ऊपरी हवाओं से संबद्ध ग्रहों, भावों आदि का विश्लेषण प्रस्तुत है। राहु-केतु : जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, शनिवत राहु ऊपरी हवाओं का कारक है। यह प्रेत बाधा का सबसे प्रमुख कारक है। इस ग्रह का प्रभाव जब भी मन, शरीर, ज्ञान, धर्म, आत्मा आदि के भावों पर होता है, तो ऊपरी हवाएं सक्रिय होती हैं। शनि : इसे भी राहु के समान माना गया है। यह भी उक्त भावों से संबंध बनाकर भूत-प्रेत पीड़ा देता है। चंद्र : मन पर जब पाप ग्रहों राहु और शनि का दूषित प्रभाव होता है और अशुभ भाव स्थित चंद्र बलहीन होता है, तब व्यक्ति भूत-प्रेत पीड़ा से ग्रस्त होता है। गुरु : गुरु सात्विक ग्रह है। शनि, राहु या केतु से संबंध होने पर यह दुर्बल हो जाता है। इसकी दुर्बल स्थिति में ऊपरी हवाएं जातक पर अपना प्रभाव डालती हैं। लग्न : यह जातक के शरीर का प्रतिनिधित्व करता है। इसका संबंध ऊपरी हवाओं के कारक राहु, शनि या केतु से हो या इस पर मंगल का पाप प्रभाव प्रबल हो, तो व्यक्ति के ऊपरी हवाओं से ग्रस्त होने की संभावना बनती है। पंचम : पंचम भाव से पूर्व जन्म के संचित कर्मों का विचार किया जाता है। इस भाव पर जब ऊपरी हवाओं के कारक पाप ग्रहों का प्रभाव पड़ता है, तो इसका अर्थ यह है कि व्यक्ति के पूर्व जन्म के अच्छे कर्मों में कमी है। अच्छे कर्म अल्प हों, तो प्रेत बाधा योग बनता है। अष्टम : इस भाव को गूढ़ विद्याओं व आयु तथा मृत्यु का भाव भी कहते हैं। इसमें चंद्र और पापग्रह या ऊपरी हवाओं के कारक ग्रह का संबंध प्रेत बाधा को जन्म देता है। नवम : यह धर्म भाव है। पूर्व जन्म में पुण्य कर्मों में कमी रही हो, तो यह भाव दुर्बल होता है। राशियां : जन्म कुंडली में द्विस्वभाव राशियों मिथुन, कन्या और मीन पर वायु तत्व ग्रहों का प्रभाव हो, तो प्रे्रत बाधा होती है। वार : शनिवार, मंगलवार, रविवार को प्रेत बाधा की संभावनाएं प्रबल होती हैं। तिथि : रिक्ता तिथि एवं अमावस्या प्रेत बाधा को जन्म देती है। नक्षत्र : वायु संज्ञक नक्षत्र प्रेत बाधा के कारक होते हैं। योग : विष्कुंभ, व्याघात, ऐंद्र, व्यतिपात, शूल आदि योग प्रेत बाधा को जन्म देते हैं। करण : विष्टि, किस्तुन और नाग करणों के कारण व्यक्ति प्रेत बाधा से ग्रस्त होता है। दशाएं : मुख्यतः शनि, राहु, अष्टमेश व राहु तथा केतु से पूर्णतः प्रभावित ग्रहों की दशांतर्दशा में व्यक्ति के भूत-प्रेत बाधाओं से ग्रस्त होने की संभावना रहती है। युति किसी स्त्री के सप्तम भाव में शनि, मंगल और राहु या केतु की युति हो, तो उसके पिशाच पीड़ा से ग्रस्त होने की संभावना रहती है। गुरु नीच राशि अथवा नीच राशि के नवांश में हो, या राहु से युत हो और उस पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो, तो जातक की चांडाल प्रवृत्ति होती है। पंचम भाव में शनि का संबंध बने तो व्यक्ति प्रेत एवं क्षुद्र देवियों की भक्ति करता है। ऊपरी हवाओं के कुछ अन्य मुख्य ज्योतिषीय योग यदि लग्न, पंचम, षष्ठ, अष्टम या नवम भाव पर राहु, केतु, शनि, मंगल, क्षीण चंद्र आदि का प्रभाव हो, तो जातक के ऊपरी हवाओं से ग्रस्त होने की संभावना रहती है। यदि उक्त
ग्रहों का परस्पर संबंध हो, तो जातक प्रेत आदि से पीड़ित हो सकता है।
यदि पंचम भाव में सूर्य और शनि की युति हो, सप्तम में क्षीण चंद्र हो तथा द्वादश में गुरु हो, तो इस स्थिति में भी व्यक्ति प्रेत बाधा का शिकार होता है।
यदि लग्न पर क्रूर ग्रहों की दृष्टि हो, लग्न निर्बल हो, लग्नेश पाप स्थान में हो अथवा राहु या केतु से युत हो, तो जातक जादू-टोने से पीड़ित होता है।
लग्न में राहु के साथ चंद्र हो तथा त्रिकोण में मंगल, शनि अथवा कोई अन्य क्रूर ग्रह हो, तो जातक भूत-प्रेत आदि से पीड़ित होता है।
यदि षष्ठेश लग्न में हो, लग्न निर्बल हो और उस पर मंगल की दृष्टि हो, तो जातक जादू-टोने से पीड़ित होता है। यदि लग्न पर किसी अन्य शुभ ग्रह की दृष्टि न हो, तो जादू-टोने से पीड़ित होने की संभावना प्रबल होती है। षष्ठेश के सप्तम या दशम में स्थित होने पर भी जातक जादू-टोने से पीड़ित हो सकता है।
यदि लग्न में राहु, पंचम में शनि तथा अष्टम में गुरु हो, तो जातक प्रेत शाप से पीड़ित होता है।
ऊपरी हवाओं के प्रभाव से मुक्ति के सरल उपाय ऊपरी हवाओं से मुक्ति हेतु शास्त्रों में अनेक उपाय बताए गए हैं। अथर्ववेद में इस हेतु कई मंत्रों व स्तुतियों का उल्लेख है। आयुर्वेद में भी इन हवाओं से मुक्ति के उपायों का विस्तार से वर्णन किया गया है। यहां कुछ प्रमुख सरल एवं प्रभावशाली उपायों का विवरण प्रस्तुत है। ऊपरी हवाओं से मुक्ति हेतु हनुमान चालीसा का पाठ और गायत्री का जप तथा हवन करना चाहिए। इसके अतिरिक्त अग्नि तथा लाल मिर्ची जलानी चाहिए।
रोज सूर्यास्त के समय एक साफ-सुथरे बर्तन में गाय का आधा किलो कच्चा दूध लेकर उसमें शुद्ध शहद की नौ बूंदें मिला लें। फिर स्नान करके, शुद्ध वस्त्र पहनकर मकान
की छत से नीचे तक प्रत्येक कमरे, जीने, गैलरी आदि में उस दूध के छींटे देते हुए द्वार तक आएं और बचे हुए दूध को मुख्य द्वार के बाहर गिरा दें। क्रिया के दौरान इष्टदेव का स्मरण करते रहें। यह क्रिया इक्कीस दिन तक नियमित रूप से करें, घर पर प्रभावी ऊपरी हवाएं दूर हो जाएंगी।
रविवार को बांह पर काले धतूरे की जड़ बांधें, ऊपरी हवाओं से मुक्ति मिलेगी।
लहसुन के रस में हींग घोलकर आंख में डालने या सुंघाने से पीड़ित व्यक्ति को ऊपरी हवाओं से मुक्ति मिल जाती है।
ऊपरी बाधाओं से मुक्ति हेतु निम्नोक्त मंत्र का यथासंभव जप करना चाहिए।
" ओम नमो भगवते रुद्राय नमः कोशेश्वस्य नमो ज्योति पंतगाय नमो रुद्राय नमः सिद्धि स्वाहा।''
घर के मुख्य द्वार के समीप श्वेतार्क का पौधा लगाएं, घर ऊपरी हवाओं से मुक्त रहेगा।
उपले या लकड़ी के कोयले जलाकर उसमें धूनी की विशिष्ट वस्तुएं डालें और उससे उत्पन्न होने वाला धुआं पीड़ित व्यक्त्ि को सुंघाएं। यह क्रिया किसी ऐसे व्यक्ति से करवाएं जो अनुभवी हो और जिसमें पर्याप्त आत्मबल हो।
प्रातः काल बीज मंत्र ÷क्लीं' का उच्चारण करते हुए काली मिर्च के नौ दाने सिर पर से घुमाकर दक्षिण दिशा की ओर फेंक दें, ऊपरी बला दूर हो जाएगी।
रविवार को स्नानादि से निवृत्त होकर काले कपड़े की छोटी थैली में तुलसी के आठ पत्ते, आठ काली मिर्च और सहदेई की जड़ बांधकर गले में धारण करें, नजर दोष बाधा से मुक्ति मिलेगी।
निम्नोक्त मंत्र का १०८ बार जप करके सरसों का तेल अभिमंत्रित कर लें और उससे पीड़ित व्यक्ति के शरीर पर मालिश करें, व्यकित पीड़ामुक्त हो जाएगा।
मंत्र : ओम नमो काली कपाला देहि देहि स्वाहा।
ऊपरी हवाओं के शक्तिषाली होने की स्थिति में शाबर मंत्रों का जप एवं प्रयोग किया जा सकता है। प्रयोग करने के पूर्व इन मंत्रों का दीपावली की रात को अथवा होलिका दहन की रात को जलती हुई होली के सामने या फिर श्मषान में १०८ बार जप कर इन्हें सिद्ध कर लेना चाहिए। यहां यह उल्लेख कर देना आवष्यक है कि इन्हें सिद्ध करने के इच्छुक साधकों में पर्याप्त आत्मबल होना चाहिए, अन्यथा हानि हो सकती है।
निम्न मंत्र से थोड़ा-सा जीरा ७ बार अभिमंत्रित कर रोगी के शरीर से स्पर्श कराएं और उसे अग्नि में डाल दें। रोगी को इस स्थिति में बैठाना चाहिए कि उसका धूंआ उसके मुख के सामने आये। इस प्रयोग से भूत-प्रेत बाधा की निवृत्ति होती है।
मंत्र : जीरा जीरा महाजीरा जिरिया चलाय। जिरिया की शक्ति से फलानी चलि जाय॥ जीये तो रमटले मोहे तो मशान टले। हमरे जीरा मंत्र से अमुख अंग भूत चले॥ जाय हुक्म पाडुआ पीर की दोहाई॥
एक मुट्ठी धूल को निम्नोक्त मंत्र से ३ बार अभिमंत्रित करें और नजर दोष से ग्रस्त व्यक्ति पर फेंकें, व्यक्ति को दोष से मुक्ति मिलेगी।
मंत्र : तह कुठठ इलाही का बान। कूडूम की पत्ती चिरावन। भाग भाग अमुक अंक से भूत। मारुं धुलावन कृष्ण वरपूत। आज्ञा कामरु कामाख्या। हारि दासीचण्डदोहाई।
थोड़ी सी हल्दी को ३ बार निम्नलिखित मंत्र से अभिमंत्रित करके अग्नि में इस तरह छोड़ें कि उसका धुआं रोगी के मुख की ओर जाए। इसे हल्दी बाण मंत्र कहते हैं।
हल्दी गीरी बाण बाण को लिया हाथ उठाय। हल्दी बाण से नीलगिरी पहाड़ थहराय॥ यह सब देख बोलत बीर हनुमान। डाइन योगिनी भूत प्रेत मुंड काटौ तान॥ आज्ञा कामरु कामाक्षा माई। आज्ञा हाड़ि की चंडी की दोहाई॥
जौ, तिल, सफेद सरसों, गेहूं, चावल, मूंग, चना, कुष, शमी, आम्र, डुंबरक पत्ते और अषोक, धतूरे, दूर्वा, आक व ओगां की जड़ को मिला लें और उसमें दूध, घी, मधु और गोमूत्र मिलाकर मिश्रण तैयार कर लें। फिर संध्या काल में हवन करें और निम्न मंत्रों का १०८ बार जप कर इस मिश्रण से १०८ आहुतियां दें।
मंत्र : ओम नमः भवे भास्कराय आस्माक अमुक सर्व ग्रहणं पीड़ा नाशनं कुरु-कुरु स्वाहा।
नजर दोष निवारक मंत्र व यंत्र |
|
|
वायुमंडल में व्याप्त अदृश्य शक्तियों के दुष्प्रभाव से ग्रस्त लोगों का जीवन दूभर हो जाता है। प्रत्यक्ष रूप से दिखाई न देने के फलस्वरूप किसी चिकित्सकीय उपाय से इनसे मुक्ति संभव नहीं होती। ऐसे में भारतीय ज्योतिष तथा अन्य धर्म ग्रंथों में वर्णित मंत्रों एवं यंत्रों के प्रयोग सहायक सिद्ध हो सकते हैं। यहां कुछ ऐसे ही प्रमुख एवं अति प्रभावशाली मंत्रों तथा यंत्रों के प्रयोगों के फल और विधि का विवरण प्रस्तुत है। ये प्रयोग सहज और सरल हैं, जिन्हें अपना कर सामान्य जन भी उन अदृश्य शक्तियों से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं। गायत्री मंत्र : गायत्री मंत्र वेदोक्त महामंत्र है, जिसके निष्ठापूर्वक जप और प्रयोग से प्रेत तथा ऊपरी बाधाओं, नजर दोषों आदि से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है। नियमित रूप से गायत्री मंत्र का जप करने वालों को ये शक्तियां कभी नहीं सताती। उन्हें कभी डरावने सपने भी नहीं आते। गायत्री मंत्र से अभिमंत्रित जल से अभिषेक करने से अथवा गायत्री मंत्र से किए गए हवन की भस्म धारण करने से पीड़ित व्यक्ति को प्रेत बाधाओं, ऊपरी हवाओं, नजर दोषों आदि से मुक्ति मिल जाती है। इस महामंत्र का अखंड प्रयोग कभी निष्फल नहीं होता। मंत्र : ओम भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्। प्रयोग विधि गायत्री मंत्र का सवा लाख जप कर पीपल, पाकर, गूलर या वट की लकड़ी से उसका दशांश हवन करें, ऊपरी हवाओं से मुक्ति मिलेगी। सोने, चांदी या तांबे के कलश को सूत्र से वेष्टित करें और रेतयुक्त स्थान पर रखकर उसे गायत्री मंत्र पढ़ते हुए जल से पूरित करें। फिर उसमें मंत्रों का जप करते हुए सभी तीर्थों का आवाहन करके इलायची, चंदन, कपूर, जायफल, गुलाब, मालती के पुष्प, बिल्वपत्र, विष्णुकांता, सहदेवी, वनौषधियां, धान, जौ, तिल, सरसों तथा पीपल, गूलर, पाकर व वट आदि वृक्षों के पल्लव और २७ कुश डाल दें। इसके बाद उस कलश में भरे हुए जल को गायत्री मंत्र से एक हजार बार अभिमंत्रित करें। इस अभिमंत्रित जल को भूता बाधा, नजर दोष आदि से पीड़ित व्यक्ति के ऊपर छिड़कर उसे खिलाएं, वह शीघ्र स्वस्थ हो जाएगा। इस प्रयोग से पैशाचिक उपद्रव भी शांत हो जाते हैं। जो घर ऊपरी बाधाओं और नजर दोषों से प्रभावित हो, उसमें गायत्री मंत्र का सवा लाख जप करके तिल, घृत आदि से उसका दशांश हवन करें। फिर उस हवन स्थल पर एक चतुष्कोणी मंडल बनाएं और एक त्रिशूल को गायत्री मंत्र से एक हजार बार अभिमंत्रित करके उपद्रवों और उपद्रवकारी शक्तियों के शमन की कामना करते हुए उसके बीच गाड़ दें। किसी शुभ मुहूर्त में अनार की कलम और अष्टगंध की स्याही से भोजपत्र पर नीचे चित्रांकित यंत्र की रचना करें। फिर इसे गायत्री मंत्र से अभिमंत्रित कर गुग्गुल की धूप दें और विधिवत पूजन कर ऊपरी बाधा या नजरदोष से पीड़ित व्यक्ति के गले में बांध दें, वह दोषमुक्त हो जाएगा।
24 | 31 | 2 | 7 |
6 | 3 | 28 | 27 |
30 | 28 | 8 | 1 |
4 | 5 | 26 | 29 |
जिन व्यक्तियों ने गायत्री मंत्र का पुरश्चरण नहीं किया हो, उन्हें यह प्रयोग करने से पहले इस मंत्र का एक बार विधिवत पुरश्चरण अवश्य कर लेना चाहिए।
अमोघ हनुमत-मंत्र : ऊपरी बाधाओं और नजर दोष के शमन के लिए निम्नोक्त हनुमान मंत्र का जप करना चाहिए। ओम ऐं ह्रीं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रीं ओम नमो भगवतेमहाबल पराक्रमाय भूत-प्रेत-पिशाच-शाकिनी डाकिनी- यक्षिणी-पूतना मारी महामारी यक्ष-राक्षस भैरव-वेताल ग्रह राक्षसादिकम क्षणेन हन हन भंजय मारय मारय शिक्षय शिक्षय महामारेश्वर रुद्रावतार हुं फट स्वाहा। इस मंत्र को दीपावली की रात्रि, नवरात्र अथवा किसी अन्य शुभ मुहूर्त में या ग्रहण के समय हनुमान जी के किसी पुराने सिद्ध मंदिर में ब्रह्मचर्य पूर्वक रुद्राक्ष की माला पर दस हजार बार जप कर उसका दशांश हवन करके सिद्ध कर लेना चाहिए ताकि कभी भी अवसर पड़ने पर इसका प्रयोग किया जा सके। सिद्ध मंत्र से अभिमंत्रित जल प्रेत बाधा या नजर दोष से ग्रस्त व्यक्ति को पिलाने तथा इससे अभिमंत्रित भस्म उसके मस्तक पर लगाने से वह इन दोषों से मुक्त हो जाता है। उक्त सिद्ध मंत्र से एक कील को १००८ बार अभिमंत्रित कर उसे भूत-प्रेतों के प्रकोप तथा नजर दोषों से पीड़ित मकान में गाड़ देने से वह मकान कीलित हो जाता है तथा वहां फिर कभी किसी प्रकार का पैशाचिक अथवा नजर दोषजन्य उपद्रव नहीं होता।
भूत-प्रेता बाधा नाशक यंत्र इस यंत्र को सिद्ध करने हेतु इसे सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण अथवा दीपावली की रात्रि में अनार की कलम तथा अष्टगंध से भोजपत्र पर ३४ बार लिखकर और धूप-दीप देकर किसी नदी में प्रवाहित करें। तत्पश्चात इस यंत्र को पुनः लिखकर विधिवत पूजन कर अपने पास रखें, हर प्रकार की प्रेत बाधा से रक्षा होगी।
9 | 16 | 5 | 4 |
7 | 2 | 11 | 14 |
12 | 13 | 8 | 1 |
6 | 3 | 10 | 15 |
इस यंत्र को सिद्ध करने की एक और विधि है। शनिवार को धोबी घाट पर पश्चिम दिशा की ओर मुख करके इसे १०८ बार लिखकर तथा धूप-दीप दिखाकर बहते हुए पानी में प्रवाहित कर दें। फिर इसे भोजपत्र पर लिखकर प्रेत बाधा या नजर दोष से ग्रस्त व्यक्ति को गले में धारण कराएं, वह दोषमुक्त हो जाएगा।
नीचे अंकित यंत्र को प्रातः काल ५ से ८ बजे के बीच अनार की कलम तथा सफेद और लाल चंदन, केसर, कुंकुम,
कपूर, कस्तूरी, अगर तथा तगर की अष्टगंध से भोजपत्र पर लिखकर धूप, दीप आदि से उसकी पूजा करें और तदनंतर अपने घर के सामने कम से कम एक हाथ गहरे गड्ढे में गाड़ दें। ध्यान रखें, जिस स्थान पर यंत्र गाड़ें, वह कभी अपवित्र न हो। यह क्रिया निष्ठापूर्वक करें, घर की भूत-प्रेत, नजर दोष आदि से रक्षा होगी।
31 | 38 | 2 | 8 |
7 | 3 | 35 | 34 |
37 | 32 | 9 | 1 |
4 | 6 | 33 | 36 |
यदि यह संभव न हो, तो यंत्र को सिद्ध करके अपने घर के प्रवेश द्वार की चौखट के ऊपरी भाग में जड़ दें तथा उसकी नियमित रूप से धूपदीप देकर पूजा करते रहें। इस यंत्र के प्रभाव से कभी भी कोई प्रेत बाधा घर में प्रवेश नहीं कर सकेगी और न ही उस पर किसी नजर दोष का प्रभाव होगा। इस्लामी यंत्र : इस इस्लामी यंत्र को किसी पर्व के अवसर पर सिद्ध कर लें।
फिर जाफरान (केसर) की स्याही बनाकर सफेद कागज या भोजपत्र पर इसकी रचना करें तथा धूप, दीप, फूल, नैवेद्य से उसकी पूजा कर लोबान की धूनी दें। तत्पश्चात उसे तांबे के तावीज में भरकर और काले धागे में पिरोकर प्रेतादि बाधा या नजर दोष से पीड़ित व्यक्ति के गले में धारण कराएं, उसे भूत-प्रेत बाधाओं, नजर दोष आदि से मुक्ति मिलेगी। इस तरह, उक्त मंत्रों और यंत्रों के अतिरिक्त और भी अनेकानेक मंत्र और यंत्र हैं जिनका अनुष्ठान कर नजर दोषों तथा ऊपरी बाधाओं से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है। इनके अतिरिक्त श्रीमद् भगवद् गीता में भी नजर दोषों से मुक्ति का उपाय बताया गया है। ग्रंथ के ग्यारहवें अध्याय का ३६वां श्लोक इस संदर्भ में द्रष्टव्य है। स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते च। रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसंघाः। इस मंत्र को जन्माष्टमी, शारदीय पूर्णिमा, दीपावली या वैशाखी पूर्णिमा की रात्रि में पवित्रतापूर्वक आसन पर बैठकर ३००० बार जप कर सिद्ध कर लेना चाहिए तत्पश्चात आवश्यकता पड़ने पर कमी भी इसका प्रयोग किया जा सकता है।
प्रयोग - यह उपाय भूत-प्रेतजन्य बाधाओं से पीड़ित व्यक्ति को उनसे मुक्ति के लिए करना चाहिए। मिट्टी के एक शुद्ध पात्र अथवा तांबे के बर्तन में गंगाजल अथवा कुएं का जल उसे उक्त सिद्ध मंत्र से ७ बार अभिमंत्रित कर लें और उसमें अपने दाएं हाथ की तर्जनी उंगली को फिराकर उसमें थोड़ा सा जल पीड़ित को पिला दें और शेष जल को उसके शरीर पर तथा उसके रहने के कमरे में छिड़क दें। यह क्रिया नियमित रूप से सुबह और शाम तब तक करते रहें, जब तक प्रेतबाधा दूर न हो जाए।
नजर दोष वैज्ञानिक आधार लक्षण और निवारण |
|
|
भारतीय समाज में नजर लगना और लगाना एक बहु प्रचलित शब्द है। लगभग प्रत्येक परिवार में नजर दोष निवारण के उपाय किए जाते हैं। घरेलू महिलाओं का मानना है कि बच्चों को नजर अधिक लगती है। बच्चा यदि दूध पीना बंद कर दे तो भी यही कहा जाता है कि भला चंगा था, अचानक नजर लग गई। लेकिन क्या नजर सिर्फ बच्चों को ही लगती है? नहीं। यदि ऐसा ही हो तो फिर लोग ऐसा क्यों कहते हैं कि मेरे काम धंधे को नजर लग गई। नया कपड़ा, जेवर आदि कट-फट जाएं, तो भी यही कहा जाता है कि किसी की नजर ल्रग गई। लोग अक्सर पूछते हैं कि नजर लगती कैसे है? इसके लक्षण क्या हैं? नजर लगने पर उससे मुक्ति के क्या उपाय किए जाएं? लोगों की इसी जिज्ञासा को ध्यान में रखकर यहां नजर के लक्षण, कारण और निवारण के उपाय का विवरण प्रस्तुत है। नजर के लक्षण नजर से प्रभावित लोगों का कुछ भी करने को मन नहीं करता। वे बेचैन और बुझे-बुझे-से रहते है। बीमार नहीं होने के बावजूद शिथिल रहते हैं। उनकी मानसिक स्थिति अजीब-सी रहती है, उनके मन में अजीब-अजीब से विचार आते रहते हैं। वे खाने के प्रति अनिच्छा जाहिर करते हैं। बच्चे प्रतिक्रिया व्यक्त न कर पाने के कारण रोने रोने लगते हैं। कामकाजी लोग काम करना भूल जाते हैं और अनर्गल बातें सोचने लगते हैं। इस स्थिति से बचाव के लिए वे चिकित्सा भीं करवाना नहीं चाहते। विद्यार्थियों का मन पढ़ाई से उचट जाता है। नौकरीपेशा लोग सुनते कुछ हैं, करते कुछ और हैं। इस प्रकार नजर दोष के अनेकानेक लक्षण हो सकते हैं। नजर किसे लगती है? नजर सभी प्राणियों, मानव निर्मित सभी चीजों आदि को लग सकती है। नजर देवी देवताओं को भी लगती है। शास्त्रों में उल्लेख है कि भगवान शिव और पार्वती के विवाह के समय सुनयना ने शिव की नजर उतारी थी। कब लगती है नजर? कोई व्यक्ति जब अपने सामने के किसी व्यक्ति अथवा उसकी किसी वस्तु को ईर्ष्यावश देखे और फिर देखता ही रह जाए, तो उसकी नजर उस व्यक्ति अथवा उसकी वस्तु को तुरत लग जाती है। ऐसी नजर उतारने हेतु विशेष प्रयत्न करना पड़ता है अन्यथा नुकसान की संभावना प्रबल हो जाती है। नजर किस की लग सकती है? किसी व्यक्ति विशेष को अपनी ही नजर लग सकती है। ऐसा तब होता है जब वह स्वयं ही अपने बारे में अच्छे या बुरे विचारव्यक्त करता है अथवा बार-बार दर्पण देखता है। उससे ईर्ष्या करने वालों, उससे प्रेम करने वालों और उसके साथ काम करने वालों की नजर भी उसे लग सकती है। यहां तक की किसी अनजान व्यक्ति, किसी जानवर या किसी पक्षी की नजर भी उसे लग सकती है। नजर की पहचान क्या है? नजर से प्रभावित व्यक्ति की निचली पलक, जिस पर हल्के रोएंदार बाल होते हैं, फूल सी जाती है। वास्तव में यही नजर की सही पहचान है। किंतु, इसकी सही पहचान कोई पारखी ही कर सकता है। नजर दोष का वैज्ञानिक आधार क्या है? कभी-कभी हमारे रोमकूप बंद हो जाते हैं। ऐसे में हमारा शरीर किसी भी बाहरी क्रिया को ग्रहण करने में स्वयं को असमर्थ पाता है। उसे हवा, सर्दी और गर्मी की अनुभूति नहीं हो पाती। रोमकूपों के बंद होने के फलस्वरूप व्यक्ति के शरीर का भतरी तापमान भीतर में ही समाहित रहता है और बाहरी वातावरण का उस पर प्रभाव नहीं पड़ता, जिससे उसके शरीर में पांच तत्वों का संतुलन बिगड़ने लगता है और शरीर में आइरन की मात्रा बढ़ जाती है। यही आइरन रोमकूपों से न निकलने के कारण आंखों से निकलने की चेष्टा करता है, जिसके फलस्वरूप आंखें की निचली पलक फूल या सूज जाती है। बंद रोमकूपों को खोलने के लिए अनेकानेक विधियों से उतारा किया जाता है। संसार की प्रत्येक वस्तु में आकर्षण शक्ति होती है अर्थात प्रत्येक वस्तु वातावरण से स्वयं कुछ न कुछ ग्रहण करती है। आमतौर पर नजर उतारने के लिए उन्हीं वस्तुओं का उपयोग किया जाता है, जिनकी ग्रहण करने की क्षमता तीव्र होती है। उदाहरण के लिए, किसी पात्र में सरसों का तेल भरकर उसे खुला छोड़ दें, तो पाएंगें कि वातावरण के साफ व स्वच्छ होने के बावजूद उस तेल पर अनेकानेक छोटे-छोटे कण चिपक जाते हैं। ये कण तेल की आकर्षण शक्ति से प्रभावित होकर चिपकते हैं। तेल की तरह ही नीबू, लाल मिर्च, कपूर, फिटकरी, मोर के पंख, बूंदी के लड्डू तथा ऐसी अन्य अनेकानेक वस्तुओं की अपनी-अपनी आकर्षण शक्ति होती है, जिनका प्रयोग नजर उतारने में किया जाता है। इस तरह उक्त तथ्य से स्पष्ट हो जाता है कि नजर का अपना वैज्ञानिक आधार है। ऊपरी हवाओं से बचाव के कुछ अनुभूत प्रयोग लहसुन के तेल में हींग मिलाकर दो बूंद नाक में डालने, नीम के पत्ते, हींग, सरसों, बच व सांप की केंचुली की धूनी देने तथा रविवार को काले धतूरे की जड़ हाथ में बांधने से ऊपरी बाधा दूर होती है। इसके अतिरिक्त गंगाजल में तुलसी के पत्ते व काली मिर्च पीसकर घर में छिड़कने, गायत्री मंत्र के (सुबह की अपेक्षा संध्या समय किया गया गायत्री मंत्र का जप अधिक लाभकारी होता है) जप, हनुमान जी की नियमित रूप से उपासना, राम रक्षा कवच या रामवचन कवच के पाठ से नजर दोष से शीघ्र मुक्ति मिलती है। साथ ही, पेरीडॉट, संग सुलेमानी, क्राइसो लाइट, कार्नेलियन जेट, साइट्रीन, क्राइसो प्रेज जैसे रत्न धारण करने से भी लाभ मिलता है। उतारा : उतारा शब्द का तात्पर्य व्यक्ति विशेष पर हावी बुरी हवा अथवा बुरी आत्मा, नजर आदि के प्रभाव को उतारने से है। उतारे आमतौर पर मिठाइयों द्वारा किए जाते हैं, क्योंकि मिठाइयों की ओर ये श्ीाघ्र आकर्षित होते हैं। उतारे की वस्तु सीधे हाथ में लेकर नजर दोष से पीड़ित व्यक्ति के सिर से पैर की ओर सात अथवा ग्यारह बार घुमाई जाती है। इससे वह बुरी आत्मा उस वस्तु में आ जाती है। उतारा की क्रिया करने के बाद वह वस्तु किसी चौराहे, निर्जन स्थान या पीपल के नीचे रख दी जाती है और व्यक्ति ठीक हो जाता है। किस दिन किस मिठाई से उतारा करना चाहिए, इसका विवरण यहां प्रस्तुत है। रविवार को तबक अथवा सूखे फलयुक्त बर्फी से उतारा करना चाहिए। सोमवार को बर्फी से उतारा करके बर्फी गाय को खिला दें। मंगलवार को मोती चूर के लड्डू से उतार कर लड्डू कुत्ते को खिला दें। बुधवार को इमरती से उतारा करें व
उसे कुत्ते को खिला दें। गुरुवार को सायं काल एक दोने में अथवा कागज पर पांच मिठाइयां रखकर उतारा करें। उतारे के बाद उसमें छोटी इलायची रखें व धूपबत्ती जलाकर किसी पीपल के वृक्ष के नीचे पश्चिम दिशा में रखकर घर वापस जाएं। ध्यान रहे, वापस जाते समय पीछे मुड़कर न देखें और घर आकर हाथ और पैर धोकर व कुल्ला करके ही अन्य कार्य करें।शुक्रवार को मोती चूर के लड्डू से उतारा कर लड्डू कुत्ते को खिला दें या किसी चौराहे पर रख दें। शनिवार को उतारा करना हो तो इमरती या बूंदी का लड्डू प्रयोग में लाएं व उतारे के बाद उसे कुत्ते को खिला दें। इसके अतिरिक्त रविवार को सहदेई की जड़, तुलसी के आठ पत्ते और आठ काली मिर्च किसी कपड़े में बांधकर काले धागे से गले में बांधने से ऊपरी हवाएं सताना बंद कर देती हैं। नजर उतारने अथवा उतारा आदि करने के लिए कपूर, बूंदी का लड्डू, इमरती, बर्फी, कड़वे तेल की रूई की बाती, जायफल, उबले चावल, बूरा, राई, नमक, काली सरसों, पीली सरसों मेहंदी, काले तिल, सिंदूर, रोली, हनुमान जी को चढ़ाए जाने वाले सिंदूर, नींबू, उबले अंडे, गुग्गुल, शराब, दही, फल, फूल, मिठाइयों, लाल मिर्च, झाडू, मोर छाल, लौंग, नीम के पत्तों की धूनी आदि का प्रयोग किया जाता है। स्थायी व दीर्घकालीन लाभ के लिए संध्या के समय गायत्री मंत्र का जप और जप के दशांश का हवन करना चाहिए। हनुमान जी की नियमित रूप से उपासना, भगवान शिव की उपासना व उनके मूल मंत्र का जप, महामृत्युंजय मंत्र का जप, मां दुर्गा और मां काली की उपासना करें। स्नान के पश्चात् तांबे के लोटे से सूर्य को जल का अर्य दें। पूर्णमासी को सत्यनारायण की कथा स्वयं करें अथवा किसी कर्मकांडी ब्राह्मण से सुनें। संध्या के समय घर में दीपक जलाएं, प्रतिदिन गंगाजल छिड़कें और नियमित रूप से गुग्गुल की धूनी दें। प्रतिदिन शुद्ध आसन पर बैठकर सुंदर कांड का पाठ करें। किसी के द्वारा दिया गया सेव व केला न खाएं। रात्रि बारह से चार बजे के बीच कभी स्नान न करें। बीमारी से मुक्ति के लिए नीबू से उतारा करके उसमें एक सुई आर-पार चुभो कर पूजा स्थल पर रख दें और सूखने पर फेंक दें। यदि रोग फिर भी दूर न हो, तो रोगी की चारपाई से एक बाण निकालकर रोगी के सिर से पैर तक छुआते हुए उसे सरसों के तेल में अच्छी तरह भिगोकर बराबर कर लें व लटकाकर जला दें और फिर राख पानी में बहा दें। उतारा आदि करने के पश्चात भलीभांति कुल्ला अवश्य करें। इस तरह, किसी व्यक्ति पर पड़ने वाली किसी अन्य व्यक्ति की नजर उसके जीवन को तबाह कर सकती है। नजर दोष का उक्त लक्षण दिखते ही ऊपर वर्णित सरल व सहज उपायों का प्रयोग कर उसे दोषमुक्त किया जा सकता है।
भूत-प्रेत बाधा निवारण का सरल उपाय शाबर मंत्र अनुष्ठान |
|
|
भूत-प्रेत बाधाओं, जादू-टोनों आदि के प्रभाव से भले-चंगे लोगों का जीवन भी दुखमय हो जाता है। ज्योतिष तथा शाबर ग्रंथों में इन बाधाओं से मुक्ति के अनेकानेक उपाय उपाय बताए गए हैं। यहां कुछ प्रमुख शाबर मंत्रों का विवरण प्रस्तुत है। ये मंत्र सहज और सरल हैं, जिनके जप अनुष्ठान से उक्त बाधाओं तथा जादू-टोनों के प्रभाव से बचाव हो सकता है। निम्नलिखित मंत्र को सिद्ध करने के लिए उसका २१ दिनों तक एक माला जप नियमित रूप से करें। हनुमान मंदिर में अगरबत्ती जलाएं। २१ वें दिन मंदिर में एक नारियल और लाल वस्त्र की ध्वजा चढ़ाएं। यह मंत्र भूत, प्रेत, डाकिनी, शाकिनी नजर दोष, जादू-टोने आदि से बचाव एवं शरीर की रक्षा के लिए अत्यंत उपयोगी है। मंत्र : क्क हनुमान पहलवान, बरस-बारह का जवान, हाथ में लड्डू, मुंह में पान। खेल-खेल कर लंका के चौगान। अंजनी का पूत, राम का दूत। छिण में कीलौं, नौ खंड का भूत। जाग-जाग हनुमान हुङ्काला, ताती लोहा लङ्काला। शीश जटा डग डेंरू उमर गाजे, वृज की कोटडी वृज का ताला। आगे अर्जुन पीछे भीम, चोर नार चम्पे न सीव। अजरा, झरे, भरमा भरे। ईंघट पिंड की रक्षा, राजा रामचंद्र जी, लक्ष्मण, कुंवर हनुमान करें। किसी बुरी आत्मा के प्रभाव अथवा किसी ग्रह के अशुभ प्रभाव के फलस्वरूप संतान सुख में बाधा से मुक्ति हेतु श्री बटुक का उतारा करना चाहिए। यह क्रिया निम्नलिखित विधि से रविवार, सोमवार, मंगलवार तीन दिन लगातार करें। विधि : उतारे के स्थान पर एक पात्र में सरसों के तेल में बने उड़द के ११ बड़े, उड़द की दाल भरी ११ कचौड़ियां, ७ प्रकार की मिठाइयां, लाल फूल, सिंदूर, ४ बत्तियों का दीपक, 1 नींबू और 1 कुल्हर जल रखें। सिंदूर को चार बत्तियों वाले दीपक के तेल में डालें। फिर फूल, कचौड़ी, बड़े, मिठाइयां सभी सामग्री एक पत्तल पर रखें तथा मन ही मन यह कहें कि ''यह भोग हम श्री बटुक भैरव जी को दे रहे हैं, वे अपने भूत- प्रेतादिकों को खिला दें और संकट ग्रस्त व्यक्ति के ऊपर जो बुरी आत्मा या ग्रहों की कुदृष्टि है, उसका शमन कर दें।'' समस्त सामग्री को पीड़ित व्यक्ति के सिर के ऊपर ७ बार उतारा करके किसी चौराहे पर रखवा दें। सामग्री रखवाकर लौट आएं। ध्यान रहे, लौटते समय पीछे न देखें। उतारा परिवार के सदस्य करें। यह क्रिया यदि अपने लिए करनी हो, तो स्वयं करें। कृत्या निवारण के लिए एक नींबू को चार टुकड़ों में चीरें। चारों टुकड़ों पर ४-४ बार निम्नलिखित मंत्र पढ़कर उन्हें चारों कोनों में फेंक दें। मंत्र : आई की, माई की, आकाश की, परेवा पाताल की। परेवा तेरे पग कुनकुन। सेवा समसेर जादू गीर समसेर की भेजी। ताके पद को बढ़ कर, कुरु-कुरु स्वाहा। राई, लाल चंदन, राल, जटामंसी, कपूर, खांड, गुग्गुल और सफेद चंदन का चूरा क्रमानुसार दो गुना लें और सबको मिलाकर अच्छी तरह कूट लें। फिर उस मिश्रण में इतना गोघृत मिलाएं कि पूरी सामग्री अच्छी तरह मिश्रित हो जाए। इस सामग्री से प्रेत बाधा से ग्रस्त घर में धूनी दें, प्रेत बाधा, क्लेशादि दूर होंगे और परिवार में शांति और सुख का वातावरण उत्पन्न होगा। व्यापार स्थल पर यह सामग्री धूनी के रूप में प्रयोग करें, व्यापार में उन्नति होगी। कोई मकान भूत-प्रेत, पिशाच, तांत्रिक, ओझा, डाकिनी या शाकिनी के अभिचार कर्म ग्रस्त हो, तो उसमें भोजपत्र पर अष्टगंध की स्याही और अनार की कलम से निम्नलिखित शाबरी यंत्र लिखकर लगा दें। यंत्र लेखन के समय निम्न मंत्र का मन ही मन उच्चारण करते रहें एवं मंत्र के ऊपर यह मंत्र भी लिख दें। मंत्र : क्क ह्रांक ह्रींक क्लींक व्यक ह्योंक हेः। भूत छुड़ाने का मंत्र : भूत छुड़ाने के भी अनेकानेक शाबर मंत्र हैं, जिनमें एक इस प्रकार है। तेल नीर, तेल पसार चौरासी सहस्र डाकिनीर छेल, एते लरेभार मुइ तेल पडियादेय अमुकार (नाम) अंगे अमुकार (नाम) भार आडदन शूले यक्ष्या-यक्षिणी, दैत्या-दैत्यानी, भूता-भूतिनी, दानव-दानिवी, नीशा चौरा शुचि-मुखा गारुड तलनम वार भाषइ, लाडि भोजाइ आमि पिशाचि अमुकार (नाम) अंगेया, काल जटार माथा खा ह्रीं फट स्वाहा। सिद्धि गुरुर चरण राडिर कालिकार आज्ञा। विधि : ऊपर वर्णित मंत्र को पहले किसी सिद्ध मुहूर्त में १०,००० बार जप कर सिद्ध कर लें। फिर सरसों तेल को २१ बार अभिमंत्रित कर भूत बाधाग्रस्त व्यक्ति पर छिड़कें, तो भूत उतर जाता है। जादू-टोना निवारण निम्नलिखित मंत्र को किसी सिद्ध मुहूर्त में १००८ बार सिद्ध करके प्रयोग के समय उसका जप करते हुए मोर पंख से पीड़ित व्यक्ति को सात बार झाड़ें। मंत्र : क्क नमो आदेश गुरु को। लूना चमारीज गत की बिजुरी, मोती हेल चमके। अमुक के पिंड में डमान करे विडमान करे, तो उस लण्डी के ऊपर पारो। दुहाई तुरंत सुलेमान पैगंबर की फिरे, मेरी भकित, गुरु की शकित। फुरो मंत्र ईश्वरी वाचा। कोई मकान भूत-प्रेत, पिशाच, तांत्रिक, ओझा, डाकिनी या शाकिनी के अभिचार कर्म ग्रस्त हो, तो उसमें भोजपत्र पर अष्टगंध की स्याही और अनार की कलम से निम्नलिखित शाबरी यंत्र लिखकर लगा दें। यंत्र लेखन के समय निम्न मंत्र का मन ही मन उच्चारण करते रहें एवं यंत्र के ऊपर यह मंत्र भी लिख दें। नजर दोष, टोना व प्रेत बाधा निवारक प्रयोग शुभ नक्षत्र में अनार की कलम और केसर व लाल चंदन से यह यंत्र लिखें। यंत्र लिखते समय मंत्र क्रम से पढ़ें जैसे पहली लाइन के पहले खाने में ६ लिखें तो पढ़ें 'सत्ती पत्ती शारदा'। फिर दूसरे खाने में १२ लिखें तो पढ़ें 'बारह बरस कुवारी'। इसी प्रकार ९ लिखने पर 'ऐ को माई परमेश्वरी', १४ लिखने पर 'चौदह भुवन निवास', २ पर 'दोई पक्खी निर्मली', १३ पर 'तेरह देवी देश', ८ पर 'अष्टभुजा परमेश्वरी', ११ पर 'ग्यारह रुद्र सैनी', १६ पर 'सोलह कला संपूर्ण', ३ पर 'त्रा नयन भरपूर', १० पर 'दसे द्वार निर्मली', ५ 'पंच करे कल्याण', ९ पर 'नव दुर्गा', ६ पर 'षट् दर्शनी', १५ पर 'पंद्रह तिथि जान' और ४ लिखने पर 'चाऊ कूठ प्रधान'। इस तरह यंत्र निर्माण करके पीड़ित के गले में बांध दें, नजर दोष, टोने, प्रेत बाधा आदि से मुक्ति मिलेगी।
भूत-प्रेत बाधा : पहचान और निदान |
|
|
भूत-प्रेतों की गति एवं शक्ति अपार होती है। इनकी विभिन्न जातियां होती हैं और उन्हें भूत, प्रेत, राक्षस, पिशाच, यम, शाकिनी, डाकिनी, चुड़ैल, गंधर्व आदि विभिन्न नामों से पुकारा जाता है। ज्योतिष के अनुसार राहु की महादशा में चंद्र की अंतर्दशा हो और चंद्र दशापति राहु से भाव ६, ८ या १२ में बलहीन हो, तो व्यक्ति पिशाच दोष से ग्रस्त होता है। वास्तुशास्त्र में भी उल्लेख है कि पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद, ज्येष्ठा, अनुराधा, स्वाति या भरणी नक्षत्र में शनि के स्थित होने पर शनिवार को गृह-निर्माण आरंभ नहीं करना चाहिए, अन्यथा वह घर राक्षसों, भूतों और पिशाचों से ग्रस्त हो जाएगा। इस संदर्भ में संस्कृत का यह श्लोक द्रष्टव्य है : ''अजैकपादहिर्बुध्न्यषक्रमित्रानिलान्तकैः।
समन्दैर्मन्दवारे स्याद् रक्षोभूतयुंतगद्यहम॥ भूतादि से पीड़ित व्यक्ति की पहचान उसके स्वभाव एवं क्रिया में आए बदलाव से की जा सकती है। इन विभिन्न आसुरी शक्तियों से पीड़ित होने पर लोगों के स्वभाव एवं कार्यकलापों में आए बदलावों का संक्षिप्त विवरण यहां प्रस्तुत है। भूत पीड़ा : भूत से पीड़ित व्यक्ति किसी विक्षिप्त की तरह बात करता है। मूर्ख होने पर भी उसकी बातों से लगता है कि वह कोई ज्ञानी पुरुष हो। उसमें गजब की शक्ति आ जाती है। क्रुद्ध होने पर वह कई व्यक्तियों को एक साथ पछाड़ सकता है। उसकी आंखें लाल हो जाती हैं और देह में कंपन होता है। यक्ष पीड़ा : यक्ष प्रभावित व्यक्ति लाल वस्त्र में रुचि लेने लगता है। उसकी आवाज धीमी और चाल तेज हो जाती है। इसकी आंखें तांबे जैसी दिखने लगती हैं। वह ज्यादातर आंखों से इशारा करता है। पिशाच पीड़ा : पिशाच प्रभावित व्यक्ति नग्न होने से भी हिचकता नहीं है। वह कमजोर हो जाता है और कटु शब्दों का प्रयोग करता है। वह गंदा रहता है और उसकी देह से दुर्गंध आती है। उसे भूख बहुत लगती है। वह एकांत चाहता है और कभी-कभी रोने भी लगता है। शाकिनी पीड़ा : शाकिनी से सामान्यतः महिलाएं पीड़ित होती हैं। शाकिनी से प्रभावित स्त्री को सारी देह में दर्द रहता है। उसकी आंखों में भी पीड़ा होती है। वह अक्सर बेहोश भी हो जाया करती है। वह रोती और चिल्लाती रहती है। वह कांपती रहती है। प्रेत पीड़ा : प्रेत से पीड़ित व्यक्ति चीखता-चिल्लाता है, रोता है और इधर-उधर भागता रहता है। वह किसी का कहा नहीं सुनता। उसकी वाणी कटु हो जाती है। वह खाता-पीता नही हैं और तीव्र स्वर के साथ सांसें लेता है। चुडै+ल पीड़ा : चुडै+ल प्रभावित व्यक्ति की देह पुष्ट हो जाती है। वह हमेशा मुस्कराता रहता है और मांस खाना चाहता है। इस तरह भूत-प्रेतादि प्रभावित व्यक्तियों की पहचान भिन्न-भिन्न होती है। इन आसुरी शक्तियों को वश में कर चुके लोगों की नजर अन्य लोगों को भी लग सकती है। इन शक्तियों की पीड़ा से मुक्ति हेतु निम्नलिखित उपाय करने चाहिए। यदि बच्चा बाहर से खेलकर, पढ़कर, घूमकर आए और थका, घबराया या परेशान सा लगे तो यह उसे नजर या हाय लगने की पहचान है। ऐसे में उसके सर से ७ लाल मिर्च और एक चम्मच राई के दाने ७ बार घूमाकर उतारा कर लें और फिर आग में जला दें। यदि बेवजह डर लगता हो, डरावने सपने आते हों, तो हनुमान चालीसा और गजेंद्र मोक्ष का पाठ करें और हनुमान मंदिर में हनुमान जी का श्रृंगार करें व चोला चढ़ाएं। व्यक्ति के बीमार होने की स्थिति में दवा काम नहीं कर रही हो, तो सिरहाने कुछ सिक्के रखे और सबेरे उन सिक्कों को श्मशान में डाल आए। व्यवसाय बाधित हो, वांछित उन्नति नहीं हो रही हो, तो ७ शनिवार को सिंदूर, चांदी का वर्क, मोतीचूर के पांच लड्डू, चमेली का तेल, मीठा पान, सूखा नारियलऔर लौंग हनुमान जी को अर्पित करें। किसी काम में मन न लगता हो, उचाट सा रहता हो, तो रविवार को प्रातः भैरव मंदिर में मदिरा अर्पित करें और खाली बोतल को सात बार अपने सरसे उतारकर पीपल के पेड़ के नीचे रख दें। शनिवार को नारियल और बादाम जल में प्रवाहित करें। अशोक वृक्ष के सात पत्ते मंदिर में रख कर पूजा करें। उनके सूखने पर नए पत्ते रखें और पुराने पत्ते पीपल के पेड़ के नीचे रख दें। यह क्रिया नियमित रूप से करें, घर भूत-प्रेत बाधा, नजर दोष आदि से मुक्त रहेगा। एक कटोरी चावल दान करें और गणेश भगवान को एक पूरी सुपारी रोज चढ़ाएं। यह क्रिया एक वर्ष तक करें, नजर दोष व भूत-प्रेत बाधा आदि के कारण बाधित कार्य पूरे होंगे। इस तरह ये कुछ सरल और प्रभावशाली टोटके हैं, जिनका कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं होता। ध्यान रहे, नजर दोष, भूत-प्रेत बाधा आदि से मुक्ति हेतु टोटके या उपाय ही करवाने चाहिए, टोना नहीं।
अपषकुन क्या है? |
फ्यूचर पॉइंट के सौजन्य से |
|
कुछ लक्षणों को देखते ही व्यक्ति के मन में आषंका उत्पन्न हो जाती है कि उसका कार्य पूर्ण नहीं होगा। कार्य की अपूर्णता को दर्षाने वाले ऐसे ही कुछ लक्षणों को हम अपषकुन मान लेते हैं। अपशकुनों के बारे में हमारे यहां काफी कुछ लिखा गया है, और उधर पष्चिम में सिग्मंड फ्रॉयड समेत अनेक लेखकों-मनोवैज्ञानिकों ने भी काफी लिखा है। यहां पाठकों के लाभार्थ घरेलू उपयोग की कुछ वस्तुओं, विभिन्न जीव-जंतुओं, पक्षियों आदि से जुड़े कुछ अपषकुनों का विवरण प्रस्तुत है। झाड़ू का अपषकुन नए घर में पुराना झाड़ू ले जाना अषुभ होता है।
उलटा झाडू रखना अपषकुन माना जाता है।
अंधेरा होने के बाद घर में झाड़ू लगाना अषुभ होता है। इससे घर में दरिद्रता आती है।
झाड़ू पर पैर रखना अपषकुन माना जाता है। इसका अर्थ घर की लक्ष्मी को ठोकर मारना है।
यदि कोई छोटा बच्चा अचानक झाड़+ू लगाने लगे तो अनचाहे मेहमान घर में आते हैं।
किसी के बाहर जाते ही तुरंत झाड़ू लगाना अषुभ होता है।
दूध का अपषकुन दूध का बिखर जाना अषुभ होता है।
बच्चों का दूध पीते ही घर से बाहर जाना अपषकुन माना जाता है।
स्वप्न में दूध दिखाई देना अशुभ माना जाता है। इस स्वप्न से स्त्री संतानवती होती है।
पशुओं का अपषकुन किसी कार्य या यात्रा पर जाते समय कुत्ता बैठा हुआ हो और वह आप को देख कर चौंके, तो विन हो।
किसी कार्य पर जाते समय घर से बाहर कुत्ता शरीर खुजलाता हुआ दिखाई दे तो कार्य में असफलता मिलेगी या बाधा उपस्थित होगी।
यदि आपका पालतू कुत्ता आप के वाहन के भीतर बार-बार भौंके तो कोई अनहोनी घटना अथवा वाहन दुर्घटना हो सकती है।
यदि कीचड़ से सना और कानों को फड़फड़ाता हुआ दिखाई दे तो यह संकट उत्पन्न होने का संकेत है।
आपस में लड़ते हुए कुत्ते दिख जाएं तो व्यक्ति का किसी से झगड़ा हो सकता है।
शाम के समय एक से अधिक कुत्ते पूर्व की ओर अभिमुख होकर क्रंदन करें तो उस नगर या गांव में भयंकर संकट उपस्थित होता है।
कुत्ता मकान की दीवार खोदे तो चोर भय होता है।
यदि कुत्ता घर के व्यक्ति से लिपटे अथवा अकारण भौंके तो बंधन का भय उत्पन्न करता है।
चारपाई के ऊपर चढ़ कर अकारण भौंके तो चारपाई के स्वामी को बाधाओं तथा संकटों का सामना करना पड़ता है।
कुत्ते का जलती हुई लकड़ी लेकर सामने आना मृत्यु भय अथवा भयानक कष्ट का सूचक है।
पषुओं के बांधने के स्थान को खोदे तो पषु चोरी होने का योग बने।
कहीं जाते समय कुत्ता श्मषान में अथवा पत्थर पर पेषाब करता दिखे तो यात्रा कष्टमय हो सकती है, इसलिए यात्रा रद्द कर देनी चाहिए। गृहस्वामी के यात्रा पर जाते समय यदि कुत्ता उससे लाड़ करे तो यात्रा अषुभ हो सकती है।
बिल्ली दूध पी जाए तो अपषकुन होता है।
यदि काली बिल्ली रास्ता काट जाए तो अपषकुन होता है। व्यक्ति का काम नहीं बनता, उसे कुछ कदम पीछे हटकर आगे बढ़ना चाहिए।
यदि सोते समय अचानक बिल्ली शरीर पर गिर पड़े तो अपषकुन होता है।
बिल्ली का रोना, लड़ना व छींकना भी अपषकुन है।
जाते समय बिल्लियां आपस में लड़ाई करती मिलें तथा घुर-घुर शब्द कर रही हों तो यह किसी अपषकुन का संकेत है। जाते समय बिल्ली रास्ता काट दे तो यात्रा पर नहीं जाना चाहिए।
गाएं अभक्ष्य भक्षण करें और अपने बछड़े को भी स्नेह करना बंद कर दें तो ऐसे घर में गर्भक्षय की आषंका रहती है। पैरों से भूमि खोदने वाली और दीन-हीन अथवा भयभीत दिखने वाली गाएं घर में भय की द्योतक होती हैं।
गाय जाते समय पीछे बोलती सुनाई दे तो यात्रा में क्लेषकारी होती है।
घोड़ा दायां पैर पसारता दिखे तो क्लेष होता है।
ऊंट बाईं तरफ बोलता हो तो क्लेषकारी माना जाता है।
हाथी बाएं पैर से धरती खोदता या अकेला खड़ा मिले तो उस तरफ यात्रा नहीं करनी चाहिए। ऐसे में यात्रा करने पर प्राण घातक हमला होने की संभावना रहती है।
प्रातः काल बाईं तरफ यात्रा पर जाते समय कोई हिरण दिखे और वह माथा न हिलाए, मूत्र और मल करे अथवा छींके तो यात्रा नहीं करनी चाहिए।
जाते समय पीठ पीछे या सामने गधा बोले तो बाहर न जाएं।
पक्षियों का अपषकुन सारस बाईं तरफ मिले तो अषुभ फल की प्राप्ति होती है। सूखे पेड़ या सूखे पहाड़ पर तोता बोलता नजर आए तो भय तथा सम्मुख बोलता दिखाई दे तो बंधन दोष होता है। मैना सम्मुख बोले तो कलह और दाईं तरफ बोले तो अषुभ हो। बत्तख जमीन पर बाईं तरफ बोलती हो तो अषुभ फल मिले। बगुला भयभीत होकर उड़ता दिखाई दे तो यात्रा में भय उत्पन्न हो। यात्रा के समय चिड़ियों का झुंड भयभीत होकर उड़ता दिखाई दे तो भय उत्पन्न हो। घुग्घू बाईं तरफ बोलता हो तो भय उत्पन्न हो। अगर पीठ पीछे या पिछवाड़े बोलता हो तो भय और अधिक बोलता हो तो शत्रु ज्यादा होते हैं। धरती पर बोलता दिखाई दे तो स्त्री की और अगर तीन दिन तक किसी के घर के ऊपर बोलता दिखाई दे तो घर के किसी सदस्य की मृत्यु होती है। कबूतर दाईं तरफ मिले तो भाई अथवा परिजनों को कष्ट होता है। लड़ाई करता मोर दाईं तरफ शरीर पर आकर गिरे तो अषुभ माना जाता है। लड़ाई करता मोर दाईं तरफ शरीर पर आकर गिरे तो अषुभ माना जाता है। अपषकुनों से मुक्ति तथा बचाव
के उपाय विभिन्न अपशकुनों से ग्रस्त लोगों को
निम्नलिखित उपाय करने चाहिए। यदि काले पक्षी, कौवा, चमगादड़
आदि के अपषकुन से प्रभावित हों तो अपने इष्टदेव का ध्यान करें या अपनी राषि के अधिपति देवता के मंत्र का जप करें तथा धर्मस्थल पर तिल के तेल का दान करें। अपषकुनों के दुष्प्रभाव से बचने के लिए धर्म स्थान पर प्रसाद चढ़ाकर बांट दें। छींक के दुष्प्रभाव से बचने के लिए निम्नोक्त मंत्र का जप करें तथा चुटकी बजाएं। क्क राम राम रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्रनाम जपेत् तुल्यम् राम नाम वरानने॥ अषुभ स्वप्न के दुष्प्रभाव को समाप्त करने के लिए महामद्यमृत्युंजय के निम्नलिखित मंत्र का जप करें। क्क ह्रौं जूं सः क्क भूर्भुवः स्वः क्क त्रयम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुच्च्िटवर्(नम् उर्वारूकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीयमाऽमृतात क्क स्वः भुवः भूः क्क सः जूं ह्रौं॥क्क॥ श्री विष्णु सहस्रनाम पाठ भी सभी अपषकुनों के प्रभाव को समाप्त करता है। सर्प के कारण अषुभ स्थिति पैदा हो तो जय राजा जन्मेजय का जप २१ बार करें। रात को निम्नोक्त मंत्र का ११ बार जप कर सोएं, सभी अनिष्टों से भुक्ति मिलेगी। बंदे नव घनष्याम पीत कौषेय वाससम्। सानन्दं सुंदरं शुद्धं श्री कृष्ण प्रकृते परम्॥
दुःस्वप्न : कारण-प्रभाव-निवारण |
हम में से हर किसी को कभी न कभी बुरे सपने आते हैं। कारण क्या है? क्या आप जानते हैं कि लगभग ५ प्रतिषत लोगों को ऐसे सपने रोज दिखाई देते हैं? अन्य सपनों की भांति इन बुरे सपनों के कारण अचानक अत्यधिक पसीने का निकलना, गालों का लाल हो जाना, नाड़ी का तेजी से चलने लगना आदि शारीरिक लक्षण दिखाई देते हैं। यह कहना कठिन है कि बुरे सपने - या फिर सपने - क्यों आते हैं। कारण कई हो सकते हैं। दूसरों के विचारों और मतों के प्रति संवेदनषील लोगों को ऐसे सपने ज्यादा दिखाई देते हैं। यदि कोई उनकी बुराई या आलोचना करे, तो वे विचलित हो उठते हैं और उनका यह विचलित होना बुरे सपने का एक कारण हो सकता है। गहरी नकारात्मक सोच या फिर दिन में मन में उठने वाले तरह-तरह के नकारात्मक विचार बुरे सपनों का कारण हो सकते हैं। ये बुरे सपने लंबे होते हैं और अक्सर रात के पिछले पहर में दिखाई देते हैं। कोई बुरा सपना देखने पर व्यक्ति को अपनी जान का खतरा सताता है। बुरे सपने ज्यादातर बच्चों को आते हैं, बढ़ती उम्र के साथ इनका आना कम होता जाता है। बुरे सपनों का ताल्लुक व्यक्ति की संवेगात्मक अवस्था से होता है। किसी व्यक्ति को उसके गंभीर मानसिक अवसाद तथा तनाव के दिनों में या फिर हाल में हुई किसी प्रियजन की मौत पर अक्सर ऐसे सपने दिखाई देते हैं। अगर सपने में आपको परीक्षा में असफलता दिखाई दे या आप स्वयं को किसी ऐसी विकट स्थिति में जकड़ा हुआ पाएं जिससे आप चाहकर भी निकल न पा रहे हों, तो इसका अर्थ है कि आप यथार्थ जीवन में संभवतः अवसाद के षिकार हों। अगर आप बीते दिनों हताशा से गुजरे हों, तो संभव है कि आपकी यह मानसिक अवस्था आपको सपने में दिखाई दे। भारतीय ज्योतिष में सपनों की विशद व्याख्या की गई है। इस व्याख्या के अनुसार सपनों में विभिन्न वस्तुओं, पशु-पक्षियों आदि के किन अवस्थाओं में दिखाई देने का क्या अशुभ फल हो सकता है इसका संक्षिप्त विवरण यहां प्रस्तुत है। प्रार्थना : यदि कोई व्यक्ति स्वप्न में यह देखे कि वह अकेला ही अपने इष्ट देव की प्रार्थना कर रहा है, तो यह समझना चाहिए कि उसकी सहायता के सभी दरवाजे बंद हो गए हैं। यदि कोई प्रार्थना से अलग रहने का स्वप्न देखे, तो उसके परिवार के किसी सदस्य को कष्ट प्राप्त होना संभव है। चीता : स्वप्न में चीते का दिखाई देना व्यक्ति की सफलता के मार्ग में कठिनाइयों का सूचक होता है। स्वप्न में चीता व्यक्ति पर आक्रमण करता दिखाई दे, तो व्यक्ति की कठिनाइयां शीघ्र ही बढ़ जाती हैं। यदि स्वप्न में चीता किसी दूसरे व्यक्ति पर आक्रमण करता हुआ दिखाई दे, तो किसी गभीर दुर्घटना के कारण, बड़े संकट में पड़ता है। ढोलक : यदि व्यक्ति किसी उत्सव में स्वयं को ढोल बजाता हुआ देखे, तो उसे कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। मशीन : यदि किसी व्यापारी को स्वप्न में पंचिंग मशीन को छोड़ कर अन्य मशीनें दिखाई दें, तो व्यवसाय में असफलता मिलती है। तितली : यदि कोई लड़की स्वप्न में किसी तितली को पकड़े किंतु वह तितली पकड़ से बाहर निकल जाए, तो उस लड़की का विवाह इच्छित लड़के से नहीं होता दस्तावेज : यदि स्वप्न में कोई दस्तावेज, अथवा बांड पर हस्ताक्षर करे, तो उसे धन की हानि होती है। आंखें : यदि स्वप्न में व्यक्ति को अपनी आंखें लाल दिखाई दें, तो उसे कोई रोग होता है। बिल्ली : यदि स्वप्न में बिल्ली दिखाई दे, तो व्यक्ति के आचरण के विषय में खराब खबरें फैलती हैं, लोग उससे घृणा करते हैं। साथ ही उसके घर चोरी आदि होने के कारण उसे आर्थिक हानि भी होती है। भोजन : यदि व्यक्ति स्वप्न में स्वयं को भोजन करता हुआ देखे, तो उसे कोई रोग होता है। छिपकली : यदि व्यक्ति को स्वप्न में अपने शरीर पर छिपकली गिरती दिखाई दे, तो उसे कोई रोग हो सकता है। यदि कोई स्त्री अपने कपड़ों पर छिपकली गिरती हुई देखे, तो किसी कारणवश कुछ दिनों के लिए उसका पति से वियोग हो सकता है। यदि स्वप्न में २ छिपकलियां लड़ती हुई दिखाई दें, तो परिवार पर भारी विपत्ति आ सकती है। चूहा : स्वप्न में चूहा दिखाई दे, तो व्यक्ति के अनेकानेक शत्रु हो सकते हैं। स्वप्न में चूहे का फंसना दिखाई देना व्यक्ति के शत्रुओं के षड्यंत्र के शिकार होने का सूचक है। यदि स्वप्न में बहुत से चूहे दिखाई दें, तो व्यक्ति को प्रत्येक क्षेत्र में असफलता मिलती है। इस तरह सपने में उक्त वस्तुओं, पशु-पक्षियों आदि का उक्त अवस्थाओं में दिखाई देना अशुभ होता है। बुरे सपनों से बचाव के लिए क्या करें? स्नानादि कर क्क यो मे राजन् मंत्र का जप करते हुए सूर्य भगवान की उपासना करें। क्क अधः स्वप्नास्य मंत्र का जप, विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र, गजेंद्र मोक्ष और पुरुष सूक्त का पाठ तथा शिव एवं शक्ति की उपासना नियमित रूप से करें। सूर्योदय के पूर्व पूर्वाभिमुखी आसनस्थ होकर गायत्री मंत्र का १०८ बार जप करें। शमी का पूजन करें। उक्त ज्योतिषीय उपायों के अतिरिक्त निम्नलिखित उपाय भी करें। जाग्रतावस्था में ज्यादा कल्पनाएं न करें। सोने से पहले समाचार देखने, या सुनने या फिर अखबार पढ़ने से बचें। उत्तेजक या माड़-धाड़ वाली फिल्मों अथवा हर उस चीज से बचें, जो आपको उत्तेजित करे। इसके अतिरिक्त मन में सकारात्मक विचार को स्थान दें, नकारात्मक विचार दूर होंगे। सोने से पहले कोई धार्मिक ग्रंथ या सन्मार्ग पर ले जाने वाली कोई पुस्तक पढ़ें या फिर अपने प्रियजन पर ध्यान केंद्रित करें। अपनी महान स्मृतियों का स्मरण करें और कुछ देर के लिए उनमें खो जाएं। ध्यान रखें, सोने से पहले किसी समस्या पर विचार न करें, अन्यथा बुरे सपने आएंगे। |
|
|
|
|
|
|
Great remedies
ReplyDeleteHi sir ..pls help with a query . Is there any particular tantra known as pootna tantra whre the infant stops drinking milk and vomits immediately if the same is forcefully fed .what r the remedies for the same .
ReplyDeleteAgar dev ghar me. Isht ki photo gir jaye toh?
ReplyDeleteYour All Problem Solution 100% Result In 24 Hours. Contact Now Acharya Ji +91 9460691335
ReplyDeleteOnline love problem solution
Online side love problem solution
Love spell Solution
Online Indian Love problem solution
Online Vashikaran Pooja Specialist
Sir ek prashn hai..agar ghar ke dwar par sindoor,lehsun aur namak pudio mein rakha paya jaaye..toh iska kya artha hai????
ReplyDeleteSir krupaya uttar deejiye????
ReplyDeleteShadi ki bandhan kar diya ho Jadu tone se to usko door karne ka koi totka ya upay jo to bataye
ReplyDelete