धूरि भरे अति शोभित श्याम जू तैसी बनी सिर सुन्दर चोटी
खेलत खात फिरैं अंगना पग पैंजनिया कटि पीरी कछौटी
वा छवि को रसख़ान विलोकत वारत काम कलानिधि कोटी
काग के भाग कहा कहिए हरि हाथ सों ले गयो माखन रोटी
मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरे पहिरौंगी।
ओढ़ि पितम्बर लै लकुटी, बन गोधन ग्वारन संग फिरौंगी।।
भावतो मोहि मेरो रसखान, सो तेरे कहे सब स्वाँग भरौंगी।
या मुरली मुरलीधर की, अधरान धरी अधरा न धरौंगी।।
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