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Tuesday, February 15, 2011

थोड़ा सा बदलाव और चमक जाएगी आपकी किस्मत

घर में रखा गया हर सामान घर के वास्तु और हमारी विचारधारा को भी किसी ना किसी रुप में प्रभावित करता है। यदि घर का वास्तु ठीक हो तो किसी भी तरह की कोई कमी नहीं होती घर हमेशा धनधान्य से भरा रहता है।

- सामान्य तौर पर शुभ दिशा उत्तर है। ईशान कोण ऊर्जा का बेहतर क्षेत्र है। यह स्थान खुला निर्माण रहित व साफ -सुथरा होना चाहिए क्योंकि यहां से प्रवाहित होने वाली ऊर्जा पूरे घर को ऊर्जामय रखती है।

- ईशान कोण में भूलकर भी झाड़ू ना रखें।
- दक्षिण दिशा हल्की व खाली होने पर घर में ऊर्जा का संतुलन बिगड़ जाता है।
- भवन में भारी संदूक, सोफासेट, अलमारी, भारी समान का स्टोर दक्षिण- पश्चिम दिशा में रखें।
- पलंग का किनारा दक्षिण दिशा में करें। ऊर्जा संतुलन के लिए आवश्यक है। घर के धरातल का ढलान उत्तर-पूर्व व ईशान्य कोण की तरफ रखें।

- उत्तर और पूर्व दिशा नीची हल्की व खुली रखने से सूर्य का प्रकाश पूर्व से पश्चिम और चुंबकीय धाराएं उत्तर से दक्षिण बिना किसी बाधा के बहती है। धनधान्य की कमी नहीं होती।

- घर में अगर कोई बीमार हो तो उसे नेऋत्य कोण में सुलाएं।

- उत्तर- पूर्व की ओर मुंह करके पानी-पीने से पर्याप्त ऊर्जा भोजन को ऊर्जावान करके स्वास्थ्य को बहुत लाभ पहुंचाती है।

- अच्छी ऊर्जा के लिए घर के कोनों को खाली और साफ-सुथरा रखना चाहिए।

घर में हो कोई भी परेशानी तो अपनाएं वास्तुटोटके

वर्तमान समय में सुविधा जुटाना आसान है। परंतु शांति इतनी सहजता से नहीं प्राप्त होती। हमारे घर में सभी सुख-सुविधा का सामान है, परंतु शांति पाने के लिए हम तरस जाते हैं। वास्तु शास्त्र द्वारा घर में कुछ मामूली बदलाव कर समस्याओं को दूर कर आप घर एवं बाहर शांति का अनुभव कर सकते हैं।


- घर के मुख्यद्वार के दोनों ओर पत्थर या धातु का एक-एक हाथी रखने से सौभाग्य में वृद्धि होती है।
- भवन में आपके नाम की प्लेट को बड़ी एवं चमकती हुई रखने से यश की वृद्धि होती है।
- स्वर्गीय परिजनों के चित्र दक्षिणी दीवार पर लगाने से उनका आशीर्वाद मिलता रहता है।
- विवाह योग्य कन्या को उत्तर-पश्चिम के कमरे में सुलाने से विवाह शीघ्र होता है।
-किसी भी दुकान या कार्यालय के सामने वाले द्वार पर एक काले कपडे में फिटकरी बांधकर लटकाने से बरकत होती है। धंधा अच्छा चलता है।
- दुकान के मुख्य द्वार के बीचों बीच नीबूं व हरी मिर्च लटकाने से नजर नहीं लगती है।
- घर में स्वस्तिक का निशान बनाने से निगेटिव ऊर्जा का क्षय होता है
- किसी भी भवन में प्रात: एवं सायंकाल को शंख बजाने से ऋणायनों में कमी होती है।
- घर के उत्तर पूर्व में गंगा जल रखने से घर में सुख सम्पन्नता आती है।
- पीपल की पूजा करने से श्री तथा यश की वृद्धि होती है। इसका स्पर्श मात्रा से शरीर में रोग प्रतिरोधक तत्वों की वृद्धि होती है।
- घर में नित्य गोमूत्र का छिडकाव करने से सभी प्रकार के वास्तु दोषों से छुटकारा मिल जाता है।
- मुख्य द्वार में आम, पीपल, अशोक के पत्तों का बंदनवार लगाने से वंशवृद्धि होती है।

क्या न खाए?, क्या न करें?

जीने के लिए खाना जितना जरूरी है, उतना ही अच्छे स्वास्थ्य के लिए कुछ खाने की चीजों से दूरी बनाए रखना जरूरी है। साथ ही हमेशा निरोगी और स्वस्थ रहने के लिए प्रतिदिन योग का अभ्यास करना चाहिए। योग शास्त्र में 12 महीनों के लिए कुछ ऐसी खाने की चीजे बताई गई हैं, जिन्हें अलग-अलग माह में नहीं खाना चाहिए। हमारा खान-पान ही हमारे शरीर को पूरी तरह तंदुस्त रखता है। अच्छे भोजन से हमारी कार्यक्षमता सही बनी रहती है, जल्दी थकान नहीं होती और साथ ही कई छोटी-छोटी बीमारियां हमेशा ही हमसे दूर रहती है।


पुराने समय में एक कहावत कही गई है- चौते गुड़, वैशाखे तेल, जेठ के पंथ, अषाढ़े बेल।

सावन साग, भादो मही, क्वार करेला, कार्तिक दही।

अगहन जीरा, पूसै धना, माघै मिसरी, फागुन चना।

जो कोई इतने परिहरै, ता घर बैद पैर नहिं धरै।

किस माह में क्या न खाएं या क्या न करें?

माह: क्या न खाएं या क्या न करें

जनवरी-फरवरी: मिस्री

फरवरी-मार्च: चना

मार्च-अप्रैल: गुड़

अप्रैल-मई: तेल

मई-जून: इस माह में गर्मी का अत्यधिक प्रकोप रहता है अत: ज्यादा घुमना-फिरना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।

जून-जुलाई: हरी सब्जियों को अच्छे साफ करके खाएं।

जुलाई-अगस्त: सत्तू, हरी सब्जियां अच्छे साफ की हुई होना चाहिए।

अगस्त-सितंबर: छाछ, दही का कम से कम सेवन करें।

सितंबर-अक्टूबर: करेला

अक्टूबर-नवंबर: छाछ, दही

नवंबर: दिसंबर: जीरा

दिसंबर-जनवरी: धनिया

अगर कमाई से ज्यादा खर्च से हैं परेशान

आजकल इस महंगाई के जमाने में हर आम आदमी आमदनी से अधिक खर्च के कारण परेशान है। घर में पैसा तो आता तो है पर कहां खर्च हो जाता है पता ही नहीं चलता है। घर में पैसों की बरकत नहीं होती है। पैसों से जुड़ी ऐसी ही कई समस्याएं हैं जिनसे आज हर कोई जुझ रहा है। आप भी पैसों से जुड़ी किसी समस्या से परेशान हैं तो नीचे लिखे टोटकों को जरूर अपनाएं।

- किसी भी गुरू पुष्य नक्षत्र के दिन होकर नहाने के बाद शंखपुष्पी की जड़ अपने घर में लेकर आएं। इस जड़ को गंगाजल से पवित्र कर दें। पवित्र करने के बाद पीले चावल के साथ चांदी की डिब्बी में रखें। फिर उसका पंचो्रपचार पूजन करें। उसके बाद इस डिब्बी को अपनी तिजोरी में रखे। हर पूर्णिमा को चांदी की डिब्बी में रखी शंखपुष्पी को बदल दें। पहले वाली जड़ को पानी में बहा दें।
-किसी भी माह के शुक्लपक्ष के प्रथम बुधवार के दिन एक तांबे का सिक्का और छ: लाल गुंजा लाल कपड़े में बांधकर किसी सुनसान जगह पर दोपहर ग्यारह से एक बजे के बीच किसी सुनसान स्थान पर अपने ऊपर से उसार कर गाड़ दें।
- मंगलवार को लाल वस्त्र में एक किलो मसुर की दाल बांधकर उसे घर के सभी सदस्यों के ऊपर से उसार कर कपड़े सहित बहते पानी में प्रवाहित कर दें।
- एक तांबे के पात्र में पानी भरकर के उसमे थोड़ा गंगा जल डालकर थोड़ा शहद डाल दें। सूर्योदय से पहले शिवलिंग पर ऊं नम: शिवाय का जप करते हुए चढ़ा दें।
- दो हांडी लें एक में सवा किलो हरी साबुत मूंग, दूसरी में सवा किलो डलियां वाला नमक भर दें। यह दो हंडियां घर में रख दें। यह टोटका बुधवार के दिन करें।

राशि के अनुसार ऐसा करें तो होगी मनोकामना पूरी


राशि के अनुसार ऐसा करें तो होगी मनोकामना पूरी

जब कोई भी इंसान अपनी किसी भी इच्छा की पूर्ति के लिए कोशिशें कर के हार जाता है तो फिर वह मंदिरों में जाकर मन्नतें मांगता है। इस तरह वह पैसों व समय दोनों का नुकसान उठाता है। फिर भी वह निश्चयपूर्वक नहीं कह सकता कि उसकी मनोकामना पूरी हो ही जाएगी। लेकिन तंत्र विज्ञान मे कुछ ऐसे टोटके हैं जिन्हे अपनाकर आप निश्चित ही अपनी सारी मनोकामनाओं को पूर्ण कर सकते हैं।



यदि आप चाहते हैं 2011में आपकी हर एक मनोकामना पूरी हो तो आपकी राशि के अनुसार नीचे लिखें टोटको को पूरी श्रद्धा से अपनाएं निश्चित ही 2011 में आपकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी।

मेष- ग्यारह हनुमान जी को सिन्दूर का चोला चढ़ाएं या वर्ष में एक बार हनुमान जी के किसी मन्दिर में रामध्वजा लगवाएं।

वृषभ- ग्यारह शुक्रवार लक्ष्मीजी या देवी के मन्दिर में खुशबु वाली अगरबत्ती चढ़ाएं और खीर का प्रसाद बांटे।

मिथुन- रोज कुछ भी खाने से पूर्व इलायची और तुलसीदल गणपति के स्मरण के साथ सेवन करें।

कर्क- भगवान शिव को हर सोमवार को मीठा दूध चढ़ाएं।

सिंह- जल में रोली और शहद मिलाकर रोज सूर्यदेव को तांबे के लोटे से अघ्र्य दें।

कन्या- २१ बुधवार गणेश जी को दूर्वा, गुड़ व साबुत मूंग चढाएं।

तुला- शुभ कार्य के लिए निकलने से पहले तुलसी के दर्शन करें और उसका एक पत्ता खाकर निकलें।

वृश्चिक- किसी भी महत्वपूर्ण कार्य के लिए निकलने से पूर्व हनुमान जी को पान का बीड़ा चढ़ाएं।

धनु- सूर्यदशा की ओर मुख करते हुए नित्य नाभि और मस्तक पर केसर का तिलक लगाएं।

मकर- हर शनिवार को उठते समय सबसे पहले खेजड़ी या पीपल के पेड़ पर जल चढाएं।

कुंभ- सात शनिवार दक्षिणामुखी हनुमान जी की परिक्रमा करें। अंत में गुड़ चने का प्रसाद चढ़ाकर हनुमान चालिसा का पाठ करें।

मीन- सात गुरुवार छोटी कन्याओं को गुड़ और भीगे चनों का प्रसाद बांटे।

पौधे


घर के मुख्यद्वार के सामने पेड़ हो तो

वास्तु और फेंगशुई के अनुसार घर में छोटे-छोटे और कुछ विशेष पेड़ पौधों को लगाना अच्छा माना जाता है तुलसी और बेंबु, मनीप्लांट, अपराजिता, जैसे कई पौधे हैं जिन्हे घर में लगाना बहुत शुभ माना जाता है लेकिन आज हम बात कर रहे हैं उन पेड़ो या पौधो का घर के सामने होना अच्छा नहीं माना जाता है।


- कई बंगलों में मुख्य द्वार के सामने कैक्टस के छोट पौधे लगा देते हैं, चाँदनी बेल या मनीप्लांट लगा देते हैं, जिससे मुख्य द्वार में अवरोध पैदा हो जाता है। इस प्रकार के घर में भी बाधा का कारण बनता है।



- मुख्य द्वार के सामने तीखे या अंदर की ओर कोई नुकीली चीज हो तो वहाँ रहने वालों को कोई न कोई बाधा आती रहेगी। इसी प्रकार यदि घर के सामने बिजली का खंभा या ट्रांसफार्मर लगा हो तो आपके यहाँ अच्छी ऊर्जा आने के बजाय निगेटिव ऊर्जा आएगी, जिसके कारण उस घर में रहने वाले लोगों को मानसिक तनाव होगा। उनका स्वास्थ्य भी अच्छा नहीं रहेगा।

- पूर्व में पीपल का पेड़ नहीं होना चाहिए। अकारण भय व धन की हानि होती है।

- आग्नेय में अनार का पेड़ अति शुभ परिणाम देने वाला होता है। दक्षिण में गुलर का पेड़ शुभ रहेगा। नैऋत्य में इमली शुभ रहती है।

- दक्षिण नैऋत्य में जामुन और कदंब का पेड़ शुभ रहता है। उत्तर में पाकड़ का पेड़ लगाना ठीक रहेगा।

- ईशान में आँवला का पेड़ अति फलदायी रहता है। ईशान-पूर्व में आम का पेड़ शुभ रहता है। इस प्रकार हम पेड़ लगाकर शुभाशुभ फल प्राप्त कर सकते हैं।

- मुख्य द्वार के सामने कोई रास्ता द्वार की ओर जा रहा हो तब भी बाधा का कारण बनता है। ग्रह स्वामी की अकाल मृत्यु हो सकती है। घर के सामने वृक्ष बड़ा रहे तो वहाँ रहने वालों की प्रगति में बाधा का कारण बनता है। यदि उस वृक्ष की छाँव घर पर पड़ती हो तो नुकसानप्रद रहता है। जबकि उसकी छाया कहीं से भी मकान पर नहीं पड़ती हो तो हानि नहीं होगी।

-कई जगह बंगलों में या घरों के सामने लंबे अशोक वृक्ष लगा दिए जाते हैं, जिससे घर में आड़ सी हो जाती है। यहाँ भी घर में रहने वालों की प्रगति के मार्ग में बाधा का कारण बनता है। जहाँ तक हो सके मुख्य द्वार को बाधा से रहित ही रखना चाहिए।

श्री गणेश की पूजा कर मिटाएं वास्तुदोष

- घर में बैठे हुए गणेशजी लगाना चाहिए।

- घर में रोज गणेशजी की आराधना से वास्तु दोष उत्पन्न होने की संभावना बहुत कम होती है।

- घर के मुख्य द्वार पर एकदंत की प्रतिमा या चित्र लगाया गया हो तो उसके दूसरी तरफ ठीक उसी जगह पर दोनों गणेशजी की पीठ मिली रहे इस प्रकार से दूसरी प्रतिमा या चित्र लगाने से वास्तु दोष का प्रभाव कम होने लगते हैं।

- भवन के जिस भाग में वास्तु दोष हो उस स्थान पर घी मिश्रित सिन्दूर से स्वस्तिक दीवार पर बनाने से वास्तु दोष का प्रभाव कम होता है।

- घर या कार्यस्थल के किसी भी भाग में वक्रतुण्ड की प्रतिमा अथवा चित्र लगाए जा सकते हैं। किन्तु यह ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि किसी भी स्थिति में इनका मुँह दक्षिण दिशा या नैऋत्य कोण में नहीं होना चाहिए।

- खड़े गणेशजी भी कायर्यस्थल पर लगाए जा सकते है। इस प्रतिमा के दोनों पैर जमीन का स्पर्श करते हुए हों। इससे कार्य में स्थिरता आने की संभावना रहती है।

- भवन के ब्रह्म स्थान अर्थात केंद्र में, ईशान कोण एवं पूर्व दिशा में सुखकर्ता की मूर्ति अथवा चित्र लगाना शुभ रहता है। किन्तु टॉयलेट अथवा ऐसे स्थान पर गणेशजी का चित्र नहीं लगाना चाहिए जहाँ लोगों को थूकने आदि से रोकना हो। यह गणेशजी के चित्र का अपमान होगा।

- सफेद रंग के विनायक की मूर्ति, चित्र लगाना चाहिए। इससे घर में हमेशा

समृद्धि बनी रहती है।

- सिन्दूरी रंग के गणपति की आराधना अनुकूल रहती है। इससे घर के सदस्यों का मन स्फूर्ति से भरा रहता है।

Thursday, February 10, 2011

गोस्वामी तुलसीदासजी के द्वारा प्रकट किये गये रामचरितमानस के मन्त्र


गोस्वामी तुलसीदासजी के द्वारा प्रकट किये गये रामचरितमानस के मन्त्र

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केवल दो ही चौपाइयों का सम्पुट अधिक मिलता है,एक तो "मंगल भुवन अमंगल हारी,द्रवउ से दसरथ अजिर बिहारी",और दूसरी"दीन दयाल बिरदु सम्भारी,हरहु नाथ मम संकट भारी",इसके बाद जो अधिक जानते है,वे अधिक और चौपाइयों का बखान करते है.पहली चौपाई का भाव केवल एक मनुष्य या परिवार के लिये नही है,इस चौपाई का भाव अगर समझा जावे तो बहुत बडा मिलता है,मंगल का अर्थ अगर ज्योतिष से लिया जावे तो भाई से मिलता है,शरीर में खून से मिलता है,संसार में धर्म से मिलता है,और हिम्मत और साहस से मिलता है,संसार में चलने वाले धर्म के अन्दर अधर्म को चलने से रोकने के लिये प्रार्थना का रूप यह चौपाई है,और प्रभु राम से प्रार्थना की गयी है,कि धर्म के प्रति अब तो इस अधर्मी संसार के मन में द्रवता का भाव भरो,द्रवता का अर्थ दायलुता से है,जो लोग एक दूसरे को मारे डाल रहे है,शराब मांस का भक्षण करने के बाद उनको पता नही होता कि वे क्या करने जा रहे है,जिस जर जोरू जमीन के लिये वे लडे जा रहे है,वह कल भी उनकी नही थी,आज कुछ समय के लिये वे मान सकते है,कि उनकी है,लेकिन कल और किसी की होगी,करोडों वर्षों से यह कहानी चली आ रही है,राजाओं ने फ़ौजें कटवादीं,लाखों लोग इन तीन के लिये मरे और मारे गये है,लेकिन समझ आज भी किसी को नही आ रही है.रामायण की चौपाइयों का अर्थ और उनका महत्व हम आगे कभी समझायेंगे,लेकिन जिन चौपाइयों को केवल स्मरण करने से बाधा दूर होती है,और प्रधानत: शांति का भान होता है,उन चौपाइयों का अर्थ और स्मरण का तरीका हम आपके समक्ष प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहे है,किसी प्रकार की भाषाई त्रुटि अगर हो जाती है,तो सज्जन क्षमा भी करेंगे,ऐसा मेरा विश्वास है.

रामायण का सबसे बडा मंत्र

रामायण का सबसे बडा मंत्र मिल जाये तो संसार की कोई भी निधि उसके सामने मायना नही रखती है,निधि को तो चोर ले जायेंगे,लुटेरे लूट लेंगे,लेकिन अगर यह निधि अगर ह्रदय में निवास करते है,तो फ़िर से वापस सभी निधियां आ जायेंगी.रामायण के सबसे बडे मंत्र का बखान श्री गोस्वामी तुलसीदास जी ने कितनी खूबशूरती से किया है:-

"राम रमेति रमेति रमो,रामेति मनोरमे,सहस्त्र नाम तातुल्यम राम नाम वरानने"

इस मंत्र को ह्रदय में रखने के बाद संसार की सभी अमूल्य निधियां मनुष्य की दासी बन जायेंगी,और उसे किसी प्रकार का डर,भय,गरीबी,अपमान,आदि किसी भी बात को सहन नही करना पडेगा.इस मंत्र को मैने अपनाया है,और आज भी मेरे ह्रदय में निवास करता है,इस मंत्र को मैने साक्षात प्रभावी माना है,इसका एक प्रमाण आपके सामने प्रस्तुत करता हूँ.

श्री रामचरित मानस के सिद्ध 'मन्त्र'

नियम-

मानस के दोहे-चौपाईयों को सिद्ध करने का विधान यह है कि किसी भी शुभ दिन की रात्रि को दस बजे के बाद अष्टांग हवन के द्वारा मन्त्र सिद्ध करना चाहिये। फिर जिस कार्य के लिये मन्त्र-जप की आवश्यकता हो, उसके लिये नित्य जप करना चाहिये। वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है-इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को साक्षी बनाकर श्रद्धा से जप करना चाहिये।

अष्टांग हवन सामग्री

१॰ चन्दन का बुरादा, २॰ तिल, ३॰ शुद्ध घी, ४॰ चीनी, ५॰ अगर, ६॰ तगर, ७॰ कपूर, ८॰ शुद्ध केसर, ९॰ नागरमोथा, १०॰ पञ्चमेवा, ११॰ जौ और १२॰ चावल।

जानने की बातें-

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जिस उद्देश्य के लिये जो चौपाई, दोहा या सोरठा जप करना बताया गया है, उसको सिद्ध करने के लिये एक दिन हवन की सामग्री से उसके द्वारा (चौपाई, दोहा या सोरठा) १०८ बार हवन करना चाहिये। यह हवन केवल एक दिन करना है। मामूली शुद्ध मिट्टी की वेदी बनाकर उस पर अग्नि रखकर उसमें आहुति दे देनी चाहिये। प्रत्येक आहुति में चौपाई आदि के अन्त में 'स्वाहा' बोल देना चाहिये।
प्रत्येक आहुति लगभग पौन तोले की (सब चीजें मिलाकर) होनी चाहिये। इस हिसाब से १०८ आहुति के लिये एक सेर (८० तोला) सामग्री बना लेनी चाहिये। कोई चीज कम-ज्यादा हो तो कोई आपत्ति नहीं। पञ्चमेवा में पिश्ता, बादाम, किशमिश (द्राक्षा), अखरोट और काजू ले सकते हैं। इनमें से कोई चीज न मिले तो उसके बदले नौजा या मिश्री मिला सकते हैं। केसर शुद्ध ४ आने भर ही डालने से काम चल जायेगा।
हवन करते समय माला रखने की आवश्यकता १०८ की संख्या गिनने के लिये है। बैठने के लिये आसन ऊन का या कुश का होना चाहिये। सूती कपड़े का हो तो वह धोया हुआ पवित्र होना चाहिये।
मन्त्र सिद्ध करने के लिये यदि लंकाकाण्ड की चौपाई या दोहा हो तो उसे शनिवार को हवन करके करना चाहिये। दूसरे काण्डों के चौपाई-दोहे किसी भी दिन हवन करके सिद्ध किये जा सकते हैं।
सिद्ध की हुई रक्षा-रेखा की चौपाई एक बार बोलकर जहाँ बैठे हों, वहाँ अपने आसन के चारों ओर चौकोर रेखा जल या कोयले से खींच लेनी चाहिये। फिर उस चौपाई को भी ऊपर लिखे अनुसार १०८ आहुतियाँ देकर सिद्ध करना चाहिये। रक्षा-रेखा न भी खींची जाये तो भी आपत्ति नहीं है। दूसरे काम के लिये दूसरा मन्त्र सिद्ध करना हो तो उसके लिये अलग हवन करके करना होगा।
एक दिन हवन करने से वह मन्त्र सिद्ध हो गया। इसके बाद जब तक कार्य सफल न हो, तब तक उस मन्त्र (चौपाई, दोहा) आदि का प्रतिदिन कम-से-कम १०८ बार प्रातःकाल या रात्रि को, जब सुविधा हो, जप करते रहना चाहिये।
कोई दो-तीन कार्यों के लिये दो-तीन चौपाइयों का अनुष्ठान एक साथ करना चाहें तो कर सकते हैं। पर उन चौपाइयों को पहले अलग-अलग हवन करके सिद्ध कर लेना चाहिये।
१॰ विपत्ति-नाश के लिये
"राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।।"
२॰ संकट-नाश के लिये
"जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।।
जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी।।
दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी।।"
३॰ कठिन क्लेश नाश के लिये
"हरन कठिन कलि कलुष कलेसू। महामोह निसि दलन दिनेसू॥"
४॰ विघ्न शांति के लिये
"सकल विघ्न व्यापहिं नहिं तेही। राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही॥"
५॰ खेद नाश के लिये
"जब तें राम ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए॥"
६॰ चिन्ता की समाप्ति के लिये
"जय रघुवंश बनज बन भानू। गहन दनुज कुल दहन कृशानू॥"
७॰ विविध रोगों तथा उपद्रवों की शान्ति के लिये
"दैहिक दैविक भौतिक तापा।राम राज काहूहिं नहि ब्यापा॥"
८॰ मस्तिष्क की पीड़ा दूर करने के लिये
"हनूमान अंगद रन गाजे। हाँक सुनत रजनीचर भाजे।।"
९॰ विष नाश के लिये
"नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को।।"
१०॰ अकाल मृत्यु निवारण के लिये
"नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहि बाट।।"
११॰ सभी तरह की आपत्ति के विनाश के लिये / भूत भगाने के लिये
"प्रनवउँ पवन कुमार,खल बन पावक ग्यान घन।
जासु ह्रदयँ आगार, बसहिं राम सर चाप धर॥"
१२॰ नजर झाड़ने के लिये
"स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी। निरखहिं छबि जननीं तृन तोरी।।"
१३॰ खोयी हुई वस्तु पुनः प्राप्त करने के लिए
"गई बहोर गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू।।"
१४॰ जीविका प्राप्ति केलिये
"बिस्व भरण पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत जस होई।।"
१५॰ दरिद्रता मिटाने के लिये
"अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के। कामद धन दारिद दवारि के।।"
१६॰ लक्ष्मी प्राप्ति के लिये
"जिमि सरिता सागर महुँ जाही। जद्यपि ताहि कामना नाहीं।।
तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएँ। धरमसील पहिं जाहिं सुभाएँ।।"
१७॰ पुत्र प्राप्ति के लिये
"प्रेम मगन कौसल्या निसिदिन जात न जान।
सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान।।'
१८॰ सम्पत्ति की प्राप्ति के लिये
"जे सकाम नर सुनहि जे गावहि।सुख संपत्ति नाना विधि पावहि।।"
१९॰ ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त करने के लिये
"साधक नाम जपहिं लय लाएँ। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ।।"
२०॰ सर्व-सुख-प्राप्ति के लिये
सुनहिं बिमुक्त बिरत अरु बिषई। लहहिं भगति गति संपति नई।।
२१॰ मनोरथ-सिद्धि के लिये
"भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहिं जे नर अरु नारि।
तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहिं त्रिसिरारि।।"
२२॰ कुशल-क्षेम के लिये
"भुवन चारिदस भरा उछाहू। जनकसुता रघुबीर बिआहू।।"
२३॰ मुकदमा जीतने के लिये
"पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।।"
२४॰ शत्रु के सामने जाने के लिये
"कर सारंग साजि कटि भाथा। अरिदल दलन चले रघुनाथा॥"
२५॰ शत्रु को मित्र बनाने के लिये
"गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई।।"
२६॰ शत्रुतानाश के लिये
"बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई॥"
२७॰ वार्तालाप में सफ़लता के लिये
"तेहि अवसर सुनि सिव धनु भंगा। आयउ भृगुकुल कमल पतंगा॥"
२८॰ विवाह के लिये
"तब जनक पाइ वशिष्ठ आयसु ब्याह साजि सँवारि कै।
मांडवी श्रुतकीरति उरमिला, कुँअरि लई हँकारि कै॥"
२९॰ यात्रा सफ़ल होने के लिये
"प्रबिसि नगर कीजै सब काजा। ह्रदयँ राखि कोसलपुर राजा॥"
३०॰ परीक्षा / शिक्षा की सफ़लता के लिये
"जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी॥
मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती॥"
३१॰ आकर्षण के लिये
"जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू। सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू॥"
३२॰ स्नान से पुण्य-लाभ के लिये
"सुनि समुझहिं जन मुदित मन मज्जहिं अति अनुराग।
लहहिं चारि फल अछत तनु साधु समाज प्रयाग।।"
३३॰ निन्दा की निवृत्ति के लिये
"राम कृपाँ अवरेब सुधारी। बिबुध धारि भइ गुनद गोहारी।।
३४॰ विद्या प्राप्ति के लिये
गुरु गृहँ गए पढ़न रघुराई। अलप काल विद्या सब आई॥
३५॰ उत्सव होने के लिये
"सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं।
तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु।।"
३६॰ यज्ञोपवीत धारण करके उसे सुरक्षित रखने के लिये
"जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग।
पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग।।"
३७॰ प्रेम बढाने के लिये
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥
३८॰ कातर की रक्षा के लिये
"मोरें हित हरि सम नहिं कोऊ। एहिं अवसर सहाय सोइ होऊ।।"
३९॰ भगवत्स्मरण करते हुए आराम से मरने के लिये
रामचरन दृढ प्रीति करि बालि कीन्ह तनु त्याग ।
सुमन माल जिमि कंठ तें गिरत न जानइ नाग ॥
४०॰ विचार शुद्ध करने के लिये
"ताके जुग पद कमल मनाउँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ।।"
४१॰ संशय-निवृत्ति के लिये
"राम कथा सुंदर करतारी। संसय बिहग उड़ावनिहारी।।"
४२॰ ईश्वर से अपराध क्षमा कराने के लिये
" अनुचित बहुत कहेउँ अग्याता। छमहु छमा मंदिर दोउ भ्राता।।"
४३॰ विरक्ति के लिये
"भरत चरित करि नेमु तुलसी जे सादर सुनहिं।
सीय राम पद प्रेमु अवसि होइ भव रस बिरति।।"
४४॰ ज्ञान-प्राप्ति के लिये
"छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा।।"
४५॰ भक्ति की प्राप्ति के लिये
"भगत कल्पतरु प्रनत हित कृपासिंधु सुखधाम।
सोइ निज भगति मोहि प्रभु देहु दया करि राम।।"
४६॰ श्रीहनुमान् जी को प्रसन्न करने के लिये
"सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपनें बस करि राखे रामू।।"
४७॰ मोक्ष-प्राप्ति के लिये
"सत्यसंध छाँड़े सर लच्छा। काल सर्प जनु चले सपच्छा।।"
४८॰ श्री सीताराम के दर्शन के लिये
"नील सरोरुह नील मनि नील नीलधर श्याम ।
लाजहि तन सोभा निरखि कोटि कोटि सत काम ॥"
४९॰ श्रीजानकीजी के दर्शन के लिये
"जनकसुता जगजननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की।।"
५०॰ श्रीरामचन्द्रजी को वश में करने के लिये
"केहरि कटि पट पीतधर सुषमा सील निधान।
देखि भानुकुल भूषनहि बिसरा सखिन्ह अपान।।"
५१॰ सहज स्वरुप दर्शन के लिये
"भगत बछल प्रभु कृपा निधाना। बिस्वबास प्रगटे भगवाना।।"

ऊँ और स्वास्तिक का महत्व

स्वास्तिक भारतीयों में चाहे वे वैदिक मतालम्बी हों या सनातनी हो या जैन मतालम्बी,ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र सभी मांगलिक कार्यों जैसे विवह आदि संस्कार घर के अन्दर कोई भी मांगलिक कार्य होने पर "ऊँ" और स्वातिक का दोनो का अथवा एक एक का प्रयोग किया जाता है। इन दोनो का प्रयोग करने का तरीका यह जरूरी नही है कि वह पढे लिखे या विद्वान संगति में ही देखने को मिलता हो,यह किसी भी ग्रामीण या शहरी संस्कृति में देखने को मिल जाता है। किसी के घर में मांगलिक कार्य होते है तो दरवाजे पर लिखा जाता है,किसी मंदिर में जाते है तो उसके दरवाजे पर यह लिखा मिलता है,किसी प्रकार की नई लिखा पढी की जाती है तो शुरु में इन दोनो को या एक को ही प्रयोग में लाया जाता है। "ऊँ" के अन्दर तीन अक्षरों का प्रयोग किया जाता है,"अ उ म" इन तीनो अक्षरों में अ से अज यानी ब्रह्मा जो ब्रह्माण्ड के निर्माता है,सृष्टि का बनाने का काम जिनके पास है,उ से उनन्द यानी विष्णुजी जो ब्रह्माण्ड के पालक है और सृष्टि को पालने का कार्य करते है, म से महेश यानी भगवान शिवजी,जो ब्रह्माण्ड में बदलाव के लिये पुराने को नया बनाने के लिये विघटन का कार्य करते है। वेदों में ऊँ को प्रणव की संज्ञा दी गयी है,जब भी किसी वेद मंत्र का उच्चारण होता है तो ऊँकार से ही शुरु किया जाता है,स्वास्तिक को चित्र के रूप में भी बनाया जाता है और लिखा भी जाता है जैसे "स्वास्ति न इन्द्र:" आदि.
हिन्दू समाज में किसी भी शुभ संस्कार में स्वास्तिक का अलग अलग तरीके से प्रयोग किया जाता है,बच्चे का पहली बार जब मुंडन संस्कार किया जाता है तो स्वास्तिक को बुआ के द्वारा बच्चे के सिर पर हल्दी रोली मक्खन को मिलाकर बनाया जाता है,स्वास्तिक को सिर के ऊपर बनाने का अर्थ माना जाता है कि धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों का योगात्मक रूप सिर पर हमेशा प्रभावी रहे,स्वास्तिक के अन्दर चारों भागों के अन्दर बिन्दु लगाने का मतलब होता है कि व्यक्ति का दिमाग केन्द्रित रहे,चारों तरफ़ भटके नही,वृहद रूप में स्वास्तिक की भुजा का फ़ैलाव सम्बन्धित दिशा से सम्पूर्ण इनर्जी को एकत्रित करने के बाद बिन्दु की तरफ़ इकट्ठा करने से भी माना जाता है,स्वास्तिक का केन्द्र जहाँ चारों भुजायें एक साथ काटती है,उसे सिर के बिलकुल बीच में चुना जाता है,बीच का स्थान बच्चे के सिर में परखने के लिये जहाँ हड्डी विहीन हिस्सा होता है और एक तरह से ब्रह्मरंध के रूप में उम्र की प्राथमिक अवस्था में उपस्थित होता है और वयस्क होने पर वह हड्डी से ढक जाता है,के स्थान पर बनाया जाता है। स्वास्तिक संस्कृत भाषा का अव्यय पद है,पाणिनीय व्याकरण के अनुसार इसे वैयाकरण कौमुदी में ५४ वें क्रम पर अव्यय पदों में गिनाया गया है। यह स्वास्तिक पद ’सु’ उपसर्ग तथा ’अस्ति’ अव्यय (क्रम ६१) के संयोग से बना है,इसलिये ’सु+अस्ति=स्वास्ति’ इसमें ’इकोयणचि’सूत्र से उकार के स्थान में वकार हुआ है। ’स्वास्ति’ में भी ’अस्ति’ को अव्यय माना गया है और ’स्वास्ति’ अव्यय पद का अर्थ ’कल्याण’ ’मंगल’ ’शुभ’ आदि के रूप में प्रयोग किया जाता है। जब स्वास्ति में ’क’ प्रत्यय का समावेश हो जाता है तो वह कारक का रूप धारण कर लेता है और उसे ’स्वास्तिक’ का नाम दे दिया जाता है। स्वास्तिक का निशान भारत के अलावा विश्व में अन्य देशों में भी प्रयोग में लाया जाता है,जर्मन देश में इसे राजकीय चिन्ह से शोभायमान किया गया है,अन्ग्रेजी के क्रास में भी स्वास्तिक का बदला हुआ रूप मिलता है,हिटलर का यह फ़ौज का निशान था,कहा जाता है कि वह इसे अपनी वर्दी पर दोनो तरफ़ बैज के रूप में प्रयोग करता था,लेकिन उसके अंत के समय भूल से बर्दी के बेज में उसे टेलर ने उल्टा लगा दिया था,जितना शुभ अर्थ सीधे स्वास्तिक का लगाया जाता है,उससे भी अधिक उल्टे स्वास्तिक का अनर्थ भी माना जाता है। स्वास्तिक की भुजाओं का प्रयोग अन्दर की तरफ़ गोलाई में लाने पर वह सौम्य माना जाता है,बाहर की तरफ़ नुकीले हथियार के रूप में करने पर वह रक्षक के रूप में माना जाता है। काला स्वास्तिक शमशानी शक्तियों को बस में करने के लिये किया जाता है,लाल स्वास्तिक का प्रयोग शरीर की सुरक्षा के साथ भौतिक सुरक्षा के प्रति भी माना जाता है,डाक्टरों ने भी स्वास्तिक का प्रयोग आदि काल से किया है,लेकिन वहां सौम्यता और दिशा निर्देश नही होता है। केवल धन (+) का निशान ही मिलता है। पीले रंग का स्वास्तिक धर्म के मामलों में और संस्कार के मामलों में किया जाता है,विभिन्न रंगों का प्रयोग विभिन्न कारणों के लिये किया जाता है।
ऊँ परमात्मा वाची कहा गया है,ऊँ को मंगल रूप में जाना गया है,जैन धर्म के अनुसार ऊँ पंच परमेष्ठीवाचक की उपाधि से विभूषित है। णमोकार मंत्र के पहले इसे प्रयोग किया गया है। ऊँ एक बीजाक्षर की भांति है,इसके मात्र उच्चारण करने से ही भक्ति महिमा का निष्पादन हो जाता है। इसका रूप दोनो आंखों के बीच में आंखों को बन्द करने के बाद सुनहले रूप में कल्पित करते रहने से यह सहज योग का रूप सामने लाना शुरु कर देता है,और उन अनुभूतियों की तरफ़ मनुष्य जाना शुरु कर देता है जिन्हे वह कभी सोच भी नही सकता है।
ऊँ कार बिन्दु संयुक्तं नित्यं ध्यायन्ति योगिना:।
कामदं मोक्षदं चैव ऊँकाराय नमो नम:॥

जय हनुमान


हमारे भारत वर्ष में अक्षर पूजा की मान्यता रही है,अक्षरों को मूर्तियों में उकेर कर और उनके रूप को सजाकर विभिन्न नाम दिये गये है। समय की धारा में मूर्ति को ही भगवान मान लिया गया और उन्ही की श्रद्धा से पूजा की जाने लगी,हनुमान जी की पूजा का अर्थ भी यही लिया गया। अक्षर "ह" को सजाकर और ब्रह्मविद्या से जोड कर देखा जाये तो "हं" की उत्पत्ति होती है। मुँह को खोलने के बाद ही अक्षर "ह" का उच्चारण किया जा सकता है। अक्षर "हं" को उच्चारित करते समय नाक और मुंह के अलावा नाभि से लेकर सिर के सर्वोपरि भाग में उपस्थित ब्रह्मरन्ध तक हवा का संचार हो जाता है। "हं हनुमतये नम:" का जाप करते करते गला जीभ और व्यान अपान सभी वायु निकल कर शरीर से बाहर हो जाती हैं। इसी प्रकार मारक अक्षर "क" का सम्बोधन करने पर और बीजाक्षर "क्रीं" को सजाने पर मारक शक्ति काली का रूप सामने आता है,लेकिन बीज "क्रां" को सजाने पर पर्वत को धारण किये हुये हनुमान जी का रूप सामने आजाता है,ग्रहों के बीजाक्षरों को उच्चारण करने पर     उन्ही अक्षरों के प्रयोग को सकारात्मक,नकारात्मक और द्विशक्ति बीजों का उच्चारण किया जाता है। जैसे मंगल जिनके देवता स्वयं हनुमान जी है,के बीजात्मक मंत्र के लिये "ऊँ क्रां क्रीं क्रौं स: भोमाय नम:" का उच्चारण किया जाता है,इस बीज मंत्र में "क्र" आक्रामक रूप में सामने होता है,बडे आ की मात्रा लगाने पर समर्थ होता है और बिन्दु का प्रयोग करने पर ब्रह्माण्डीय शक्तियों का प्रवेश होता है।

 इसी प्रकार से अगर शिव जी के मंत्र को जपा जाता है तो "ऊँ नम: शिवाय" का जाप किया जाता है,अक्षर "श" को ध्यानपूर्वक देखने पर बैठे हुये भगवान शिव का रूप सामने आता है,लेकिन जबतक "इ" की मात्रा नही लगती है,तब तक शब्द "शव" ही रहता है,इ की मात्रा लगते ही "शिव" शक्ति से पूर्ण हो जाता है,शनि देव का रंग काला है और ग्रहों के लिये इनका प्रयोग शक्ति वाले श का प्रयोग किया गया है,अगर शनि के बीज मंत्र को ध्यान से देखें तो "शं" बीज का प्रयोग किया गया है,"ऊँ शं शनिश्चराय नम:" का जाप करने पर भगवान शनि के द्वारा दिये गये कठिन समय को आराम से निकाला जा सकता है।

 लेकिन अक्षर "शं" को साकार रूप में सजाने पर मुरली बजाते हुये भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति भी मिलती है,और उस मूर्ति का रंग भी काला है,वृंदावन में कोकिलावन की उपस्थिति इसी बात का द्योतक मानी जा सकती है। शब्द हरि को अगर सजा दिया जाये तो लिटाकर रखने पर सागर के अन्दर लेटी हुयी भगवान विष्णु की प्रतिमा को माना जा सकता है। "श्रीं" शब्द को सजाकर देखा जाये तो लक्ष्मी जी का रूप साक्षात देखा जा सकता है।

 ह्रीं को सजाकर देखने पर माता सरस्वती को देखा जा सकता है,इसी प्रकार से विभिन्न अक्षरों को सजाकर देखने पर उन भगवान के दर्शन होते है।

ईश्वरीय कृपा से धन


धन एक गौड साधन है,बिना धन के ज्ञानी व्यक्ति भी बेकार लगता है,बिना धन के किसी प्रकार की शक्ति भी आस्तित्वहीन होती है,आज के युग में जिसे देखो धन की तरफ़ भाग रहा है,और धन के लिये कितने ही गलत काम किये जा रहे है,भाई भाई का दुश्मन बना बैठा है,बाप बेटे को धन के लिये छोड देता है,पत्नी धन के लिये पति की हत्या करवा देती है,आदि तरीके लोग धन के लिये अपना रहे है,अगर धन को ईश्वरीय शक्ति से प्राप्त किया जाये,तो वह धन अधिक स्थाई और अच्छे कामों में खर्च होने वाला होता है,और जो भी खर्चा किया जाता है वह मानसिक और शारीरिक दोनो प्रकार के सुख देता है,तामसी कारणों से लोगों को लूट खसोट कर प्राप्त किया जाने वाला धन हमेशा बुरे कामों में ही खर्च होता है,धन तो खर्च होता ही है,लेकिन हमेशा के लिये दुखदायी भी हो जाता है। सही तरीके से और ईमानदारी से धन कमाने के लिये ईश्वरीय शक्ति की जरूरत पडती है,ईश्वरीय शक्ति को प्राप्त करने के लिये ईश्वर में आस्था बनानी पडती है,और आस्था बनाने के लिये नियमित रूप से उपाय करने पडते है,नियमित रूप से उपाय करने के लिये अपने को प्रयासरत रखना पडता है। आइये आपको कुछ सहज में ही ईश्वरीय शक्तियों से धन प्राप्त करने के तरीके बता देता हूँ,इस प्रकार से प्राप्त किये जाने वाले धन को प्रयोग करने के बाद आपको कितनी शांति और समृद्धि मिलती है,आपको खुद को पता चल जायेगा। प्रयास के लिये तीन बातों का ख्याल रखना भी जरूरी है कि इन्सान को तीन तरह का प्रयास सदैव जारी रखना चाहिये,एक तो अपनी मानवीय शक्ति को सहेज कर रखना,दूसरे जो भी भौतिक साधन अपने पास है,उनका प्रयोग करते रहना,और तीसरा प्रयास ईश्वर से दैविक शक्ति को प्राप्त करने के बाद उसका प्रयोग करते रहना।



पहला उपाय 

आप अपने निवास स्थान में उत्तर-पूर्व दिशा में एक साफ़ जगह पर स्थान चुन लीजिये,उस स्थान को गंदगी आदि से मुक्त कर लीजिये,फ़िर एक साफ़ लकडी का पाटा उस स्थान पर रख लीजिये,और एक चमेली के तेल की सीसी,पचास मोमबत्ती सफ़ेद और पचास मोमबत्ती हरी और एक माचिस लाकर रख लीजिये। अपना एक समय चुन लीजिये जिस समय आप जरूर फ़्री रहते हों,उस समय में आप घडी मिलाकर ईश्वर से धन प्राप्त करने के उपाय करना शुरु कर दीजिये। पाटे को पानी और किसी साफ़ कपडे से साफ़ करिये,एक हरी मोमबत्ती और एक सफ़ेद मोमबत्ती दोनो को चमेली के तेल में डुबोकर नहला लीजिये,दोनो को एक माचिस की तीली जलाकर उनके पैंदे को गर्म करने के बाद एक दूसरे से नौ इंच की दूरी पर बायीं (लेफ़्ट) तरफ़ हरी मोमबत्ती और दाहिनी (राइट) तरफ़ सफ़ेद मोमबत्ती पाटे पर चिपका दीजिये। दुबारा से माचिस की तीली जलाकर पहले हरी मोमबत्ती को और फ़िर सफ़ेद मोमबत्ती को जला दीजिये,दोनो मोमबत्तिओं को देखकर मानसिक रूप से प्रार्थना कीजिये "हे धन के देवता कुबेर ! मुझे धन की अमुक (जिस काम के लिये धन की जरूरत हो उसका नाम) काम के लिये जरूरत है,मुझे ईमानदारी से धन को प्राप्त करने में सहायता कीजिये",और प्रार्थना करने के बाद मोमबत्ती को जलता हुआ छोड कर अपने काम में लग जाइये। दूसरे दिन अगर मोमबत्ती पूरी जल गयी है,तो उस जले हुये मोम को वहीं पर लगा रहने दें,और नही जली है तो वैसी ही रहने दें,दूसरी मोमबत्तियों को पहले दिन की तरह से ले लीजिये,और पहले जली हुयी मोमबत्तियों से एक दूसरी के नजदीक लगाकर जलाकर पहले दिन की तरह से वही प्रार्थना करिये,इस तरह से धीरे धीरे मोमबत्तिया एक दूसरे की पास आती चलीं जायेगी,जितनी ही मोमबत्तियां पास आती जायेंगी,धन आने का साधन बनता चला जायेगा,और जैसे ही दोनो मोमबत्तियां आपस में सटकर जलेंगी,धन प्राप्त हो जायेगा। जब धन प्राप्त हो जाये तो पास के किसी धार्मिक स्थान पर या पास की किसी बहती नदी में उस मोमबत्तियों के पिघले मोम को लेजाकर श्रद्धा से रख आइये या बहा दीजिये,जो भी श्रद्धा बने गरीबों को दान कर दीजिये,ध्यान रखिये इस प्रकार से प्राप्त धन को किसी प्रकार के गलत काम में मत प्रयोग करिये,अन्यथा दुबारा से धन नही आयेगा।


दूसरा उपाय 

दूसरे प्रकार के उपाय में कुछ धन पहले खर्च करना पडता है,इस उपाय के लिये आपको जो भी मुद्रा आपके यहां चलती है आप ले लीजिये जैसे रुपया चलता है तो दस दस के पांच नोट ले लीजिये डालर चलता है तो पांच डालर ले लीजिये आदि। बाजार से पांच नगीने जैसे गोमेद एमेथिस्ट जेड सुनहला गारनेट ले लीजिये,यह नगीने सस्ते ही आते है,साथ ही बाजार से समुद्री नमक भी लेते आइये। यह उपाय गुरुवार से शुरु करना है,अपने घर मे अन्दर एक ऐसी जगह को देखिये जहां पर लगातार सूर्य की रोशनी कम से कम तीन घंटे रहती हो,एक पोलीथिन के ऊपर पहले पांच नोट रखिये,उनके ऊपर एक एक नगीना रख दीजिये,और उन नगीनो तथा नोटों पर समुद्री नमक पीस कर थोडा थोडा छिडक दीजिये और उन्हे सूर्य की रोशनी में लगातार तीन घंटे के लिये छोड दीजिये। तीन घंटे बाद उन नोटों और नगीनों को समुद्री नमक को उसी पोलीथीन पर पर साफ़ कर लीजिये,और उस पोलीथिन वाले नमक को अपने घर के मुख्य दरवाजे पर डाल दीजिये,उन नगीनों और नोटों को अपने पर्स में रख लीजिये,अगर कोई तुम्हारा जान पहिचान का या कोई रिस्तेदार तुम्हारे पास आता है तो उसे एक नगीना कोई सा भी उसी गुरुवार को यह कहकर दीजिये कि यह नगीना भाग्य बढाने वाला है,और एक नोट उनमें से किसी बच्चे को बिस्कुट लाने के लिये या किसी प्रकार बिल चुकाने के काम में उसी दिन ले लीजिये,दूसरे गुरुवार को दूसरा नगीना किसी को फ़िर दान कर दीजिये और एक नोट किसी बच्चे या किसी प्रकार के घरेलू खर्चे में खर्च कर दीजिये,यही क्रम लगातार चार गुरुवार तक करना है,पांचवे गुरुवार को बचा हुआ एक नगीना और नोट अपनी तिजोरी या धन रखने वाले स्थान में रख लीजिये,आपके पास लगातार धन का प्रवाह शुरु हो जायेगा,उस धन में से 3% दान करते रहिये,जब तक वह नगीना और नोट आपके पास रहेगा,धन की कमी नही आ सकती है।


तीसरा उपाय 

अधिकतर मामलों में व्यापार करते हुये धन की कमी होती है,लगातार प्रतिस्पर्धा के कारण लोग व्यवसाय को काटते है,और ग्राहकों को अपनी तरफ़ आकर्षित करते है,अपनी बिजनिस बढाने के लिये तांत्रिक उपाय करते है,और उन तांत्रिक उपायों को करने के बाद खुद तो उल्टा सीधा कमाते है,लेकिन अपने सामने वाले को भी बरबाद करते है तथा कुछ दिनों में उनके द्वारा किये गये तांत्रिक उपायों का असर खत्म हो जाने पर दिवालिया बन कर घूमने लगते है। अपने व्यवसाय स्थल से नकारात्मक ऊर्जा को हटाने और ग्राहकी बढाने का तरीका आपको बता रहा हूँ, इस तरीके को प्रयोग करने के बाद आप खुद ही महसूस करने लगेंगे ।
सोमवार के दिन किसी नगीने बेचने वाले से तीन गारनेट के नग खरीदकर लाइये,और रात को उन्हे किसी साफ़ कांच के बर्तन में पानी में डुबोकर खुले स्थान में रख दीजिये,उन नगों को लगातार नौ दिन तक यानी अगले मंगलवार तक उसी स्थान पर रखा रहने दीजिये,और मंगलवार की शाम को उन नगीनों को मय उस पानी के उठा लीजिये,बुधवार को उस पानी से नगीनों को अपने व्यवसाय वाले स्थान पर निकाल लीजिये और पानी को व्यवसाय स्थान के सभी कोनों और अन्धेरी जगह पर कैस काउन्टर और टेबिल ड्रावर के अन्दर छिडक दीजिये,तथा उन नगीनों को (तीनों को) अपनी टेबिल पर सजाकर सामने रख लीजिये,इस प्रकार से आपके व्यापारिक स्थान की नकारात्मक ऊर्जा बाहर चली जायेगी,और सकारात्मक ऊर्जा आने लगेगी । नगीनों को सम्भाल कर रखे,जिससे कोई उन्हे ले न जा सके।


सबसे बड़ा धन 


अधिकतर पढाई करने के बाद सन्तान की नौकरी और व्यवसाय की चिन्ता हर माता पिता को होती है,बच्चे जवानी और अपनी उमंग के कारण उन्हे कौन से क्षेत्र में जाना है,उसे भूल जाते है,और दूसरों की देखा देखी अपनी वास्तविक नोलेज को भूलकर दूसरों के चक्कर में पड कर अपने को बरबाद कर लेते है,जब वे अपनी योग्यता को नहीं दिखा पाते है तो वे गलत कार्यों की तरफ़ बढ जाते है,और उनका जीवन जो सहज रास्ते पर जा रहा था वह कठिनाइयों की तरफ़ चला जाता है,दिग्भ्रम हो जाने पर लाख कोशिश करने पर भी बच्चे अपनी जगह पर वापस नही आ पाते है,और आते है तब तक उनका बहुमूल्य समय बरबाद हो गया होता है। सबसे पहले अपने बच्चे को सही रास्ते पर लाने के लिये या वह कहीं गलत रास्ते पर तो नही जा रहा है,का ध्यान उसी प्रकार से रखना चाहिये जैसे एक माली अपने पेड को संभालता है,कब उसे पानी देना है कब उसमें खाद देनी है,कही जंगली जानवर उस पेड को खत्म तो नही कर रहा है,कहीं कोई बीमारी पेड को तो नही लग रही है,कहीं कोई खरपतवार उस पेड के साथ तो नही उग रहा है जो उस पेड को दी जाने वाली खाद पानी को पेड तक पहुंचने ही नही देना चाहता हो,आदि बातें ध्यान में रखने पर बच्चे को सही दिशा तक ले जाया सकता है। बच्चे को सही रास्ते पर ले जाने के लिये वैदिक रूप से कुछ उपाय बताये गये है,उनको आप लोगों के लिये लिख रहा हूँ।
  • रात को सोते समय बच्चे के सिरहाने उसकी दाहिनी तरफ़ पानी का एक लोटा या गिलास रखना चाहिये,जिससे रात को सोते समय कुविचार उसके सुषुप्त मस्तिक पर असर नही दे पायें।
  • बच्चे के जगने पर उसके पास जरूर उपस्थित रहें,जितना बच्चा जगने के बाद आपको देखेगा,उतना ही वह दिन भर आपकी तस्वीर को वह अपने दिमाग में रखेगा,अधिक समय तक आपको अपने सामने पाने पर वह कभी आपको अलग नही कर पायेगा,और गल्ती करने पर आपकी ही तस्वीर उसके दिमाग में आकर उसे गलत काम से रोकेगी।
  • बच्चे को अपने हाथ से खाना परोसना चाहिये,बनाया चाहे किसी ने भी हो,उसे बच्चे की रुचि के अनुसार अगर आपके हाथ से परोसा गया है तो वह उसके शरीर में उसी तरह से लगेगा जिस प्रकार से बचपन में माँ का दूध लगता है।
  • बच्चे को दूसरों की नजर जरूर लगती है,चाहे वह अपने ही घर वालों की क्यों न हो,शाम को बच्चा जब बिस्तर पर सोने जाये तो एक पत्थर को बच्चे के ऊपर से ओसारा करने के बाद किसी पानी से धोकर एक नियत स्थान पर रख देना चाहिये,जिस दिन खतरनाक नजर लगी होगी या कोई बीमारी परेशान करने वाली होगी,वह पत्थर अपने स्थान पर नही मिलेगा,अथवा टूटा मिलेगा।

Thursday, February 3, 2011

गोमती चक्र

गोमती चक्र कम कीमत वाला एक ऐसा पत्थर है जो गोमती नदी में मिलता है। विभिन्न तांत्रिक कार्यों तथा असाध्य रोगों में इसका प्रयोग होता है। इसका तांत्रिक उपयोग बहुत ही सरल होता है। किसी भी प्रकार की समस्या के निदान के लिए यह बहुत ही कारगर उपाय है।


1- यदि घर में भूत-प्रेतों का उपद्रव हो तो दो गोमती चक्र लेकर घर के मुखिया के ऊपर घुमाकर आग में डाल दें तो घर से भूत-प्रेत का उपद्रव समाप्त हो जाता है।

2- यदि घर में बीमारी हो या किसी का रोग शांत नहीं हो रहा हो तो एक गोमती चक्र लेकर उसे चांदी में पिरोकर रोगी के पलंग के पाये पर बांध दें। उसी दिन से रोगी को आराम मिलने लगता है।

3- प्रमोशन नहीं हो रहा हो तो एक गोमती चक्र लेकर शिव मंदिर में शिवलिंग पर चढ़ा दें और सच्चे ह्रदय से प्रार्थना करें। निश्चय ही प्रमोशन के रास्ते खुल जाएंगे।

4- व्यापार वृद्धि के लिए दो गोमती चक्र लेकर उसे बांधकर ऊपर चौखट पर लटका दें और ग्राहक उसके नीचे से निकले तो निश्चय ही व्यापार में वृद्धि होती है।

5- यदि इस गोमती चक्र को लाल सिंदूर के डिब्बी में घर में रखें तो घर में सुख-शांति बनी रहती है।